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मिलिए छतरपुर के एक ऐसे शख्स से जो करता है लाशों की रखवाली !

छतरपुर जिला अस्पताल में एक ऐसा कर्मचारी है, जो लाशों की देखरेख और उसका रखरखाव करता है. साथ ही पोस्टमार्टम के दौरान भी डॉक्टरों की मदद करता है. खास बात ये है कि आजादी के पहले अंग्रेजों के जमाने में उसके पिता यही काम करते थे, लेकिन उनकी मौत के बाद आज भी उनका बेटा यही काम कर रहा है.

Chhatarpur District Hospital
छतरपुर जिला अस्पताल

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Published : Feb 1, 2021, 1:34 PM IST

छतरपुर। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला अस्प्ताल में सफाई कर्मचारी के पद पर पदस्थ अशोक महरौलीया एक ऐसे इंसान हैं, जिनके दम पर जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम जैसे महत्वपूर्ण काम संपन्न हो पाते हैं. दरअसल सफाई कर्मचारी अशोक के पिता हज्जु जिला अस्पताल में आजादी के पहले से काम करते थे और उस समय उनका काम भी लाशों की देखरेख करना और पोस्टमार्टम में डॉक्टरों का सहयोग करना था, हज्जु के बाद यह जिम्मेदारी डाक्टरों ने अशोक को दे दी, अब पिता के बाद लगभग 40 सालों से अशोक इस जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी के साथ निभा रहे हैं.

एक ऐसा शख्स जो लाशों की करता है रखवाली
  • आजादी के पहले पिता ने निभाई जिम्मेदारी अब बेटा निभा रहा फर्ज

जिला अस्पताल में स्वीपर के पद पर पदस्थ अशोक रैकवार एवं उनके पिता हज्जु रैकवार की एक ऐसी जोड़ी थी, जो आजादी के पहले से लेकर आजादी के बाद तक लाशों की देखरेख और रखरखाव का काम करते हैं. हालांकि अशोक के पिता हजू की मौत हो चुकी है और अब यह जिम्मेदारी अशोक पिछले 40 सालों से भी अधिक समय से निभाते आ रहे हैं.

सफाई कर्मचारी अशोक मेहरोलिया
  • पोस्टमार्टम सहयोगी के रूप में काम कर रहे अशोक

वैसे तो जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम सहयोगी के रूप में कोई भी पद स्वीकृत नहीं है, लेकिन अंग्रेजों के जमाने में अशोक के पिता यानी कि हज्जू यह काम जिला अस्पताल के लिए किया करते थे और उनकी मौत के बाद यह काम उनका बेटा अशोक मेहरोलिया करने लगा.

  • आजादी से पहले हज्जु ने संभाली जिम्मेदारी

आजादी से पहले अशोक के पिता यानी कि हज्जु ने यह जिम्मेदारी पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ निभाई, अज्जू के काम करने के तरीके से डॉक्टर इतने प्रभावित थे कि उसके बेटे को भी इसी काम के लिए रख लिया और पिछले 40 सालों से हज्जू का बेटा अशोक मेहरोलिया इस काम को बेहद जिम्मेदारी के साथ निभा रहा है.

लाशों की रखवाली
  • कोरोना काल में भी लाशों की देखभाल की

कोरोना काल में एक ओर जहां लोग एक दूसरे से मिलने में भी कतरा रहे थे, ऐसे में अशोक अपने काम को पूरी ईमानदारी से करते हुए ना सिर्फ लाशों को पोस्टमार्टम हाउस में संभालते थे, बल्कि डॉक्टरों का हर संभव सहयोग भी करते थे, कोरोना काल में अन्य बीमारियों से हुई मौत और एक्सीडेंट में हुए मौतों के बाद लोगों की लाशों को भी अशोक महरौलीया ही संभालते थे.

  • जिला अस्पताल का पूरा स्टाफ करता है तारीफ

सिविल सर्जन डॉक्टर लखन तिवारी बताते हैं कि पिता-पुत्र की जोड़ी जिले में सबसे पुरानी है, अशोक के पिता की मौत के बाद अशोक एकमात्र ऐसा सफाई कर्मचारी हैं, जिसने पोस्टमार्टम हाउस में जिले के लगभग सभी पुराने डॉक्टरों के साथ काम किया है, अशोक अपना पूरा काम ईमानदारी के साथ करते हैं और आज तक उससे कोई भी गलती नहीं हुई है, यही वजह है कि जिला अस्पताल के सभी डॉक्टर और पूरा स्टाफ अशोक की न सिर्फ इज्जत करता है, बल्कि उन्हें हमेशा सहयोग करने के लिए भी खड़ा रहता है.

छतरपुर जिला अस्पताल
  • अशोक मेहरोलिया अपने काम से बेहद खुश

अशोक मेहरोलिया भी जिला अस्पताल में काम करके बेहद खुश हैं लेकिन अगर उन्हें किसी बात की तकलीफ है तो वह यह है कि अब तक व सैकड़ों डॉक्टरों के साथ हजारों पोस्टमार्टम कर चुके हैं लेकिन एक पोस्टमार्टम करने पर सरकार के द्वारा जो एक निर्धारित राशि देने के लिए तय की गई है. वह उन्हें अभी तक नहीं मिली है और इसी को लेकर वह परेशान रहते हैं.

  • अंग्रेजों के जमाने से अब तक करते हैं लाशों की देखरेख

छतरपुर जिले में ही नहीं बल्कि पूरे बुंदेलखंड में पिता पुत्र की ऐसी कहीं जोड़ी नहीं थी, जिन्होंने अंग्रेजों के जमाने से लेकर अभी तक पोस्टमार्टम हाउस में काम किया हो, लेकिन छतरपुर जिले की जिला अस्पताल में अशोक एवं उसके पिता अज्जू एकमात्र ऐसे थे, जिन्होंने आजादी से लेकर आजादी के बाद भी ना सिर्फ लाशों का रखरखाव किया, बल्कि पोस्टमार्टम करते समय भी कभी कोई गलती नहीं की. हालांकि पोस्टमार्टम करते समय एक डॉक्टर मौजूद रहता है और अशोक एवं उसके पिता सिर्फ सहयोग ही करते थे.

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