छतरपुर। जिले से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम बसारी में अब तक कई शॉर्ट फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है. यहां के हर घर का व्यक्ति कला के लिए समर्पित रहता है और साथ ही साथ यहां के लोग कला को खूबसूरती से सजाते भी हैं. बसारी गांव में रहने वाले लोग फिल्मों के किरदार भी निभाते हैं. इस गांव में रहने वाले हर व्यक्ति ने कभी न कभी, फिल्म में किरदार जरूर निभाया है. गांव का नाम लेते ही आंखों के सामने बेरोजगारी की तस्वीर तैरने लगती है, लेकिन इस गांव के लोगों की रगों में एक्टिंग दौड़ती है.
बुंदेलखंड का बसारी गांव, जहां कला में बसती है लोगों की जिंदगी
बसारी गांव में रहने वाले लोग फिल्मों के किरदार भी निभाते हैं. इस गांव में रहने वाले हर व्यक्ति ने कभी न कभी, फिल्म में किरदार जरूर निभाया है.
यहां की कला-श्रृंखला निहारते ही बनती है. गांव के लोगों में बस दो ही चीजें बस्ती हैं कला और प्रेम. यहां के लोगों के लिए कला सांस की तरह है और प्रेम उनके लिए आत्मा. गांव के कलाकार, दादरा, फाग, सोहर, राई, लमटेरा, कहरवा, बन्ना, आल्हा, कजरी, बिरहा, दिवारी, नाटक और ऐसी कई शास्त्रीय विधाएं राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश कर चुके हैं.
वाद्य यंत्रों की बात की जाए तो सितार, सारंगी, बांसुरी, हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा, नगरिया, लगभग सभी प्रकार के यंत्रों को बजाने में यहां के लोगों को महारत हासिल है. कलाकारों ने थोड़ा निराश होते हुए भी कहा कि मोबाइल इंटरनेट के दौर में इस कला के प्रति लोगों का आकर्षण अब न के बराबर रह गया है. शहर में तो ये कला प्रायः समाप्त हो गई है, लेकिन उन्हें गांव में अब भी कद्रदान मिल जाते हैं, लेकिन नई पीढ़ी तो इस पुश्तैनी कला से जुड़ना तक नहीं चाहती.