छतरपुर।1930 के दशक में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन पूरे उफान पर था. बापू की दांडी यात्रा ने अंग्रेज सरकार के सामने कठिन चुनौती पैदा कर दी थी. पूरे देश की तरह ही बुंदेलखंड में भी सत्याग्रह आंदोलन की चिंगारी भड़क उठी थी. अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में छतरपुर जिले के शहीद स्मारक चरणपादुका में जनसभा का आयोजन किया गया. इसकी खबर अंग्रेजों को लग गई. जिसके चलते 14 जनवरी 1931 को अंग्रेजों के जनरल फिशर ने यहां अंधाधुंध गोलियां चलवा दीं.
खून से लाल हो गया था उर्मिल का पानी
फायरिंग में भारत मां के 21 सपूत शहीद हो गए और सैकड़ों घायल होकर अपनी जान बचाने को उर्मिल नदी में कूद गए. कहते हैं कि, नदी का पानी आजादी के दीवानों के लहू से लाल हो गया. अंग्रेजों का खौफ लोगों में इस कदर था की, जो लोग गायब हो गए, उनके घरवालों ने इस बात को दबा के रखा, ताकि उनके घर वालों पर अंग्रेजों का कहर न बरसे.
अंग्रेजों के अत्याचारों के विरोध में हुआ था सभा का आयोजन
दरअसल क्रांतिकारी पंडित रामसहाय तिवारी को अंग्रेज गिरफ्तार करने वाले थे. उनके मार्गदर्शन में यहां के देश भक्त आजादी की मुहिम को आगे बढ़ा रहे थे. वहीं अंग्रेजों ने तमाम तरह के कर भी जनता पर लगा दिए थे. इन्हीं सब मुद्दों को लेकर उर्मिल नदी के किनारे चरणपादुका नाम के इस स्थान पर क्रांतिकारियों की सभा की गई थी.
मकर संक्रांति पर लगता है मेला
ऐसा मानना है की, इस घटना में और भी लोग शहीद हुए थे. तब से इस पवित्र स्थान को छतरपुर का जलियावाला बाग और शहीद स्मारक कहा जाने लगा. इस स्थान पर एक सप्ताह तक 14 जनवरी से मेला लगता है. शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है. लेकिन कहीं न कहीं इस ऐतिहासिक धरोहर को वो दर्जा नहीं मिल पाया, जो मिलना चाहिए था. तभी तो अगर कुछ जिलों को छोड़ दिया जाए, तो इस जगह के इतिहास को लोग शायद जानते भी नहीं हैं. जब सारा देश महात्मा गांधी की 151वीं जंयती मना रहा है तब भी यहां वीरानापन देखा जा सकता है.