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बुंदेली उत्सव में 'आल्हा' की धूम, वीरों की गाथा सुन मंत्रमुग्ध हुए लोग - आल्हा लोक गीत

विलुप्त हो रही संस्कृति को मंच के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने के लिए छतरपुर में बुंदेली उत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इसी कड़ी में शुक्रवार को लोकगायकों ने आल्हा की प्रस्तुति दी.

Bundeli Utsav in Chhatarpur
बुंदेली उत्सव का आयोजन

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Published : Feb 22, 2020, 11:19 AM IST

छतरपुर।जिले में हो रहे बुंदेली उत्सव में शुक्रवार का दिन आल्हा के नाम रहा. इस दौरान बुंदेलखंड में गाया जाने वाला लोक कला गीत आल्हा गाया गया. जो कि ज्यादातर बुंदेलखंड में गाया जाता है. इस गीत के माध्यम से लोग बुंदेल के राजा-महाराजा और वीर पुरुषों की गाथाओं का बुंदेली भाषा में बखान करते हैं. आल्हा की प्रस्तुति मंच से लोकगायक मुकेश यादव ने दी. जिसे सुन वहां लोग मौजूद मंत्रमुग्ध हो गए.

बुंदेली उत्सव का आयोजन

विलुप्त हो रही संस्कृति का किया जा रहा मंचन

जिले के बसारी गांव जो कि पर्यटक गांव के नाम से भी जाना जाता है, वहां बुंदेली उत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इस कार्यक्रम का आयोजन बुंदेलखंड से विलुप्त हो रही लोक कथाओं और लोकगीतों के साथ विभिन्न संस्कृतियों को मंच के माध्यम से लोगों के बीच में लाने की कोशिश की जा रही है. जिससे संस्कृति, बुंदेली कलाकृति विलुप्त होने से बची रहे. वहीं महोत्सव में मंच पर आल्हा गीत ने धूम मचा दी. जिसे हजारों की संख्या में मौजूद लोगों ने सराहा.

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वीर गाथाओं के लिए इजाद किया गया आल्हा

बुंदेलखंड में आल्हा गीत अमूमन ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा कई मौकों पर गाया जाता है. इस गीत के माध्यम से आल्हा-ऊदल की गाथाओं और कहानियों को लोगों तक पहुंचाने का काम किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि आल्हा-ऊदल बुंदेलखंड के सबसे श्रेष्ठतम योद्धाओं में से एक थे. उन्हीं की वीर गाथाओं के लिए आल्हा गीत माला का इजाद किया गया था, जो कि बुंदेलखंड में बुंदेली भाषा में गाया जाने वाला एक विशेष तरीके का गीत होता है. जिसमें विशेष तरीके से बजने वाले वाद्य यंत्रों के अलावा इसे विशेष तरह से गाया जाता है. आल्हा को आज भी लोग बड़ी ही तन्मयता के साथ सुनते हैं.

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