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130 सालों से कांग्रेस में चल रही वंशवाद की परंपराः बीजेपी

सियासत में वंशवाद की रिवायत कोई नई नहीं है, बीजेपी-कांग्रेस के अलावा समाजवाद का ढोल पीटने वाली सपा-राजद भी पीछे नहीं है, लेकिन बीजेपी का दावा है कि बीजेपी वंशवाद को नहीं बढ़ा रही, कांग्रेस ही 130 सालों से इस परंपरा को ढो रही है.

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Published : Mar 20, 2019, 5:12 PM IST

बीजेपी नहीं कांग्रेस में वंशवाद

भोपाल। सियासत में वंशवाद-परिवारवाद कोई नई बात नहीं है, यदि सियासत की बात छोड़ भी दें तो हर मां-बाप को अपने बच्चों के भविष्य की चिंता तब तक रहती है. जब तक बच्चे व्यवस्थित नहीं हो जाते, बस यही बात नेता प्रतिपक्ष ने कह दी कि जब अधिकारी का बेटा अधिकारी, व्यापारी का बेटा व्यापारी तो क्या नेता के बेटा भिखारी बनेगा. क्यों नहीं नेता के लायक बच्चों को टिकट मिलना चाहिए. हालांकि, बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही वंशवाद की परंपरा आगे बढ़ाने में पीछे नहीं हैं.

बीजेपी में नहीं कांग्रेस में वंशवाद

बीजेपी नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर, पूर्व सीएम शिवराज की पत्नी साधना सिंह, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव, पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन की पुत्री मौसम बिसेन दावेदारी पेश कर रही हैं, पूर्व सांसद फूलचंद्र वर्मा के पुत्र राजेंद्र वर्मा, पूर्व सांसद दिलीप भूरिया की पुत्री निर्मला भूरिया सहित पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस ने भी दावेदारी पेश की है. वंशवाद पर भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष नितिन दुबे ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस में पिछले 130 साल से वंशवाद की परंपरा चली आ रही है, जबकि बीजेपी में वंशवाद बिल्कुल भी नहीं है.

कांग्रेस में भी वंशवाद की परंपरा आगे बढ़ाने वालों की कमी नहीं है, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह-भाई लक्ष्मण सिंह ने भी चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की है, जबकि दिग्विजय की सीट पर अभी भी पार्टी असमंजस में है. मुख्यमंत्री कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ, पूर्व उप मुख्यमंत्री सुभाष यादव के पुत्र अरुण यादव, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह ने भी उम्मीदवारी पेश की है. अब एनएसयूआई प्रवक्ता सुहिद्र तिवारी ने एनएसयूआई की दावेदारी ठोक दी है.

मध्यप्रदेश की 29 सीटों के लिए दोनों पार्टियां उम्मीदवारों के चयन में माथा पच्ची कर रही हैं, जबकि टिकट के दावेदार भोपाल से दिल्ली तक एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, ताकि उन्हें टिकट मिल जाये. इसके लिए कोई परिवारवाद का सहारा ले रहा है तो कोई वंशवाद का विरोध कर अपनी दावेदारी पक्की करने की जुगत में है.

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