भोपाल। लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद सभी दल सेनापति-महारथी की तलाश में जुट गये हैं, जबकि कई दल एक साथ मिलकर अपनी-अपनी शक्ति देकर महारथी तैयार कर रहे हैं, अब उत्तर प्रदेश के सियासी गणित का असर मध्यप्रदेश में भी पड़ने वाला है क्योंकि बसपा प्रमुख मायावती ने दो टूक क दिया कि पूरे देश में कांग्रेस से किसी तरह का गठबंधन मंजूर नहीं है.
रविवार को कांग्रेस की यूपी ईकाई के अध्यक्ष राज बब्बर ने कहा था कि सपा-बसपा के गठबंधन ने यदि रायबरेली और अमेठी में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं तो उसके जवाब में कांग्रेस ने सात सीटें सपा-बसपा-रालोद के लिए छोड़ दीं, बस यही बात मायावती को नागवार लगी और उन्होंने ट्विटर पर ही खरी खोटी सुना डाली.
जब मायावती-अखिलेश ने गठबंधन किया था तो दोनों ने खुद को कमरे में बंद कर खिड़की कांग्रेस के लिए खोल रखा था, तब मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा करने से उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला है, लेकिन वह अमेठी-रायबरेली में अपने प्रत्याशी नहीं उतारेंगी, ताकि बीजेपी प्रत्याशी को हराना कांग्रेस के लिए आसान हो. उस वक्त इस बयान पर कांग्रेस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन जब कांग्रेस ने दो सीटों के बदले सात सीटों पर अपने प्रत्याशी वापस ले लिया और यही बात मायावती की तरह कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने भी मीडिया में कह दिया कि सपा-बसपा गठबंधन के दो सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतारने के बदले कांग्रेस ने सात सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारा.
अब सवाल ये है कि मायावती की ये तल्खी कांग्रेस को भले ही यूपी में कोई खास नुकसान न पहुंचा पाये, लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है क्योंकि मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड में बसपा का अच्छा प्रभाव है, उत्तर प्रदेश में सटे एमपी के ज्यादातर जिलों में सपा-बसपा का ज्यादा प्रभाव है, जबकि बुंदेलखंड में भी इनके वोटर काफी संख्या में हैं. 2014 में हुए आम चुनाव में मुरैना सीट पर बसपा जीतते-जीतते रह गयी, तब वहां से अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा मैदान में थे, जबकि कई सीटों पर बसपा तीसरे-चौथे नंबर पर रही. वहीं, 2009 के आम चुनाव में बसपा ने रीवा सीट पर जीत दर्ज की थी, पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो पथरिया व भिंड सीट पर बसपा प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है.