भोपाल। मध्यप्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस का तिलिस्म पांच महीने में ही खत्म हो गया. पिछले साल के आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुमत के करीब पहुंच गयी और जोड़ तोड़ कर सरकार भी बना ली, इसके बाद अपने वादों के मुताबिक किसानों की कर्जमाफी भी कर दी, लेकिन पांच महीने में ही आखिर ऐसी कौन सी चूक हुई जो जनता का कांग्रेस से इस कदर मोह भंग कर दी कि लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की लुटिया ही डुबा दी.
लोकसभा चुनाव में कई मोर्चों पर कांग्रेस विफल रही, पहली बात तो ये कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभार न देकर मध्यप्रदेश में ही सक्रिय रखना था, इससे कांग्रेस मध्यप्रदेश में मजबूत होती और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपनी सीट बचाने में सफल हो सकते थे, उनका मध्यप्रदेश से बाहर रहना कांग्रेस के लिए नुकसानदायी साबित हुआ, जबकि सिंधिया की हार के पीछे उनका अति आत्मविश्वास भी माना जा रहा है क्योंकि इस सीट पर अब तक जितने भी चुनाव हुए, उनमें कभी भी सिंधिया परिवार के सदस्य को हार नहीं मिली, यही वजह है कि ज्योतिरादित्य अपनी परंपरागत सीट पर ज्यादा ध्यान नहीं दिये और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी रही, जिससे कमलनाथ संगठन के लिए उतना समय नहीं निकाल पाये, जितना निकालना चाहिए था, विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद कमलनाथ के प्रबंधन क्षमता की खूब तारीफ हुई, लेकिन लोकसभा में मिली हार ने उनके किये कराये पर पानी फेर दिया. कमलनाथ के बदले पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी किसी और को सौंप सकती थी, सबको पता है कि अकेले कमलनाथ के दम पर कांग्रेस मध्यप्रदेश की सत्ता में वापसी नहीं की थी, बल्कि उस वक्त चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी ज्योतिरादित्य सिंधिया संभाल रहे थे, इसके अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी खूब पसीना बहाये थे, जबकि चुनाव के 6 महीने पहले से ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा कर पार्टी के लिए पर्दे के पीछे से जमीन तैयार करने में जुट गये थे. हालांकि, पार्टी दिग्विजय को भोपाल की बजाय राजगढ़ से प्रत्याशी बनाती तो नतीजे कुछ और हो सकते थे.
इसके अलावा मध्यप्रदेश चुनाव प्रभारी दीपक बावरिया स्वास्थ्य कारणों से संगठन के लिए उतना समय नहीं निकाल पाये, जितना निकालना चाहिए था, जबकि कांग्रेस इतनी बुरी हार की उम्मीद नहीं कर रही थी, कांग्रेस को लग रहा था कि विधानसभा चुनाव में कर्जमाफी का प्रयोग सफल होने के बाद हर गरीब को 72 हजार रुपये देने का फॉर्मूला काम आयेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. यही वजह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, अरुण यादव, अजय सिंह जैसे दिग्गज भी अपनी सीट पर जीत दर्ज करने में नाकाम रहे. कुल मिलाकर अकेले कमलनाथ के जिम्मे पूरे प्रदेश का चुनावी मैनेजमेंट रह गया और कमलनाथ को खुद का चुनाव जीतने के अलावा बेटे को संसद पहुंचाने की चिंता भी सता रही थी, यदि वह इस बार बेटे को दिल्ली नहीं भेज पाते तो शायद उनके बेटे के सियासी करियर को शुरूआत में ही बड़ा झटका लगता, जिससे उसे उबरने में वक्त लगता.
मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी दीपक बावरिया ने बताया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है, उसे स्वीकार भी कर लिया गया है, कयास ये भी लगाये जा रहे हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश में कांग्रेस की कमान मिल सकती है, यदि सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष बनते हैं तो उनके सामने संगठन को मजबूत करने के अलावा जनता के दिलों में कांग्रेस के लिए जगह बनाने और सरकार को बचाये रखने की भी चुनौती रहेगी क्योंकि बीजेपी बार-बार सरकार गिरने की बात कहकर मनोवैज्ञानिक दबाव भी बना रही है. ऐसे में कांग्रेस की छोटी सी चूक भी सत्ता से बेदखल कर सकती है, बीजेपी ताक में है कि कब मौका मिले और वह प्रदेश की सत्ता कांग्रेस से छीन ले.
जो काम कांग्रेस अब कर रही है, यही दो-चार महीने पहले की होती तो शायद नतीजे कुछ और होते और संसद में उसकी उपस्थिति भी सम्मानजनक रहती, लेकिन इस बार तो राहुल गांधी के करीबी सिंधिया और खड़गे भी संसद से बाहर हो गये हैं. अब संसद के अंदर राहुल को नये सलाहकार की जरूरत भी पड़ेगी. भले ही राहुल की न्याय योजना ने अन्याय किया, लेकिन AFSPA की समीक्षा और देशद्रोह की धारा खत्म करने के वादे ने जनता का रुख राष्टवाद की ओर मोड़ दिया और सिर्फ राष्ट्रवाद के नाम पर ही जनता ने मतदान किया.
हालांकि, कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की खबर को कांग्रेस ने भ्रामक व असत्य बताया है, प्रदेश प्रवक्ता शोभा ओझा ने ट्वीट कर ये जानकारी दी है कि ये मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं दिया है, इस्तीफे की पेशकश के संबंध में जो भी खबरें मीडिया व सोशल मीडिया में प्रकाशित व प्रसारित हो रही हैं, वह सभी पूरी तरह से आधारहीन, भ्रामक व असत्य हैं.