बुरहानपुर। सब पढ़े सब बढ़े, पढ़ेगा तभी तो बढ़ेगा इंडिया जैसे नारे जहां भी नजर घुमाएंगे वहीं आपको देखने को मिल जायेंगे. लेकिन शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए इन नारों से कही ज्यादा मूलभूत सुविधाओं में सुधार की जरूरत है. बुरहानपुर जिले के गढ़ाताल गांव में सरकारी स्कूल नहीं होने की वजह से बच्चों को कुटिया में पढ़ाई करनी पड़ रही है. नौनिहालों को पढ़ाई के लिए एक अदद इमारत तक मुअस्सर नहीं हो पा रही है.
ऐसे पढ़ेगा इंडिया, तो कैसे बढ़ेगा इंडिया: इस गांव में नहीं है कोई स्कूल भवन, कुटिया में तालीम लेते हैं मासूम
मध्यप्रदेश सरकार में शिक्षा व्यवस्था कितनी दुरूस्त है इसका अंदाजा इस लगाया जा सकता है कि बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर ग्राम गढ़ताल के भुरपनी फाल्या में शासकीय प्राथमिक शाला घासफूस की कुटिया में लग रही है. जहां कुटिया में ही नौनिहाल तालीम लेने को मजबूर है.
प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था कितनी दुरूस्त है, इसकी तस्दीक ये तस्वीर कर रही है. बुरहानपुर जिले से 50 किलोमिटर दूर ग्राम गढ़ताल के भुरपनी फाल्या में शासकीय स्कूल तो है लेकिन स्कूल के पास बिल्डिंग नहीं है, लिहाजा बच्चों को मजबूरन घासफूस की कुटिया में तालीम लेनी पड़ रही है.
अधिकारियों का गैरजिम्मेदाराना रवैया मासूम बच्चों के भविष्य से तो खिलवाड़ कर रही रहा है, जिंदगी को भी जोखिम में डाल रहा है. लेकिन प्रशासन अपनी नाकामी पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है. हैरानी की बात ये है कि आजादी के सात दशक गुजर जाने के बाद भी लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं, शासन- प्रशासन की ओर से दावे तो खूब किए गए लेकिन अगर कुछ मिला है, तो है सरकार का ठेंगा.
प्रदेश सरकार शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए भले ही बड़े- बड़े दावे कर ले, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. कहीं स्कूल भवन नहीं होने से कहीं बच्चे पेड़ के नीचे तो कहीं जर्जर मकान और कहीं कुटिया में पढ़ने को मजबूर हैं. शिक्षा के लिए तमाम मुसीबतों से जद्दोजहद करते हुए ये बच्चे इस कुटिया में पहुंचते हैं. लेकिन इन 55 बच्चों के भविष्य की चिंता ना तो प्रशासन को है और न ही शिक्षा विभाग को है. लिहाजा प्रशासन ने यहां एक भवन बनवाना भी मुनासिब नहीं समझा.