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आजा़दी के 70 बरस बाद भी बुनियादी सुविधाओं को मोहताज है बुरहानपुर का शंकरनगर गांव

शंकरनगर में 45 से ज्यादा परिवार वाले इस गांव के अधिकांश घरों में 5 बच्चों से अधिक बच्चे हैं, जिसका मुख्य कारण ग्रामीणों में फैला अंधविश्वास और नामर्द कहलाने की जलालत है.

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Published : Feb 2, 2019, 3:32 PM IST

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बुरहानपुर। आजादी के सात दशक बाद न जानें कितनी सरकारें आईं और गईं लेकिन अब भी कई गांव ऐसे हैं जो बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. ऐसे में जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर रायगांव पंचायत का एक ऐसा गांव हैं जो विकास का बाट जोह रहा है. वहीं अशिक्षा की वजह से यह गांव कई रूढ़िवादी परंपराओं से आज भी जकड़ा है.

दरअसल हम बात कर रहे हैं शंकरनगर गांव की जिसे बसे तो 40 साल बीत गए. लेकिन इस गांव के लोग दुनिया से आज भी कटे हुए हैं. इस गांव में गोसाई समाज के 250 लोगों की आबादी है, जिसमे अधिकतर बच्चे हैं, उस पर सितम यह है कि इन बच्चों को शिक्षित करने के लिए यहां ना तो आंगनवाड़ी है और ना ही प्राइमरी स्कूल. तो साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के भी लाले पड़े हैं.

यहां के बच्चे डेढ़ किलोमीटर दूर रायगांव के शासकीय प्राइमरी स्कूल में पढ़ने जाते हैं. जो महज कक्षा पांच तक की शिक्षा हासिल कर पाते हैं. स्कूल की शिक्षक किरण वाणी ने बताया कि यहां शंकरनगर के 20 से अधिक बच्चों का नामांकन दर्ज है, जिनमें से गिने चुने बच्चे ही स्कूल आते हैं. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि बच्चे व्यस्त सड़क मार्ग से डेढ़ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है लिहाजा हादसों के डर से परिजन बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते हैं. जिसके बाद ग्रामीणों ने गांव में आंगनवाडी और प्राइमरी स्कूल की मांग की है.


शंकरनगर में 45 से ज्यादा परिवार वाले इस गांव के अधिकांश घरों में 5 बच्चों से अधिक बच्चे हैं, जिसका मुख्य कारण ग्रामीणों में फैला अंधविश्वास और नामर्द कहलाने की जलालत है. ग्रामीण बताते हैं कि जिस व्यक्ति की पांच से कम संतानें होती है उसे गांव के लोग नामर्द का तमागा देते हैं, यही वजह है कि ग्रामीणों के तानों से बचने के लिए ग्रामीण एक के बाद एक बच्चें को जन्म दे रहे हैं. वहीं यहां की महिलाएं गर्भ निरोधक का उपयोग या नसबंदी कराना समाज के खिलाफ मानती हैं. जिसकी वजह से इस गांव में बच्चो की संख्या लगातार बढ़ रही है.

गांव के पंच सज्जन सुखलाल ने बताया कि आंगनवाड़ी और स्कूल को लेकर कई बार सरपंच और अधिकारियों को अवगत कराया है, लेकिन केवल आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला. सरपंच हमारी सुध नहीं लेता इसी कारण आज यह गांव अशिक्षित रह गया है.

ग्राम पंचायत रायगांव के सचिव पंकज कुशवाह से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि इस गांव में हमने नसबंदी कैंप भी लगवाए किंतु यहां की महिलाओं ने नसबंदी करने से मना कर दिया. यहां हर घर मे 5 से अधिक बच्चे हैं, यह लोग भिक्षा मांगने जाते है, इनको समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई प्रयास किए गए हैं.

तो वहीं जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी अनिल पवार ने बताया कि इस गांव के उत्थान के लिए महिला एवमं बाल विकास, शिक्षा विभाग के साथ मिलकर अपना-अपना रोल निभाएगें और इस गांव में सुविधा देने की हरसंभव कोशिश करेंगे.

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