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क्या सियासी पिच पर जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे अरुण यादव, जानें सियासी सफर

खंडवा लोकसभा सीट से तीसरी बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता अरुण यादव का मुकाबला बीजेपी के नंदकुमार सिंह चौहान से है. अरुण यादव प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुभाष यादव के पुत्र है. विधानसभा चुनाव में उन्होंने पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ बुधनी से चुनाव लड़ा था. जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

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Published : May 18, 2019, 12:25 PM IST

Updated : May 18, 2019, 6:00 PM IST

खंडवा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अरुण यादव

खंडवा/बुरहानपुर। बीजेपी को दिन में तारे दिखाने और बंजर जमीन पर कांग्रेसी हरियाली गढ़ने वाले अरुण यादव कांग्रेस के लिए अरुणोदय साबित हुए, 2014 में प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने जमीन पर जो तैयारी शुरू की थी, उस पर तैयार फसल कांग्रेस ने 2018 के अंत में काटी. कहते हैं दूध की जली बिल्ली छांछ भी फूंककर पीती है. 2014 में ही मोदी लहर में मुंह की खाने के बाद उन्होंने खुद को साबित करने के लिए संगठन को मजबूत करने में पूरी ताकत झोंक दी और परिवर्तन यात्रा के जरिए पूरे प्रदेश की धरा को नाप डाला.

जाने अरुण यादव का सियासी सफर

भले ही अरुण यादव सियासी परिवार से आते हैं, पर उनका सियासी कद बढ़ने के पीछे उनकी मेहनत और लगन का भी कम महत्व नहीं है क्योंकि उनके पिता सूबे की सत्ता में नंबर दो की हैसियत रखते थे, लेकिन सियासी सफर पर निकलते ही पिता का साया छूट जाना अरुण के लिए किसी सदमे से कम नहीं था. फिर भी उन्होंने खुद को संभाला और अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला किया.

2007 में खरगोन संसदीय सीट से उपचुनाव जीतकर सियासी आगाज करने वाले अरुण यादव 2008 से 2009 तक लोकलेखा समिति के सदस्य रहे. 2009 में खंडवा से दूसरी जीत के साथ ही उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली, लेकिन 2014 में मोदी लहर ने उनके जीत की हैट्रिक पर ब्रेक लगा दिया. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के संगठन को जमीन पर स्थापित करने में पूरी ताकत लगा दी.

पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही अरुण यादव को अध्यक्ष पद से हटा दिया, तब उनके समर्थकों ने पार्टी पर धोखा करने का आरोप लगाया, लेकिन चुनाव से पहले ही अरुण यादव को उनकी मेहनत का ईनाम मिला और उन्हें कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित सदस्य बना दिया गया. साथ ही पार्टी ने विधानसभा चुनाव में बुधनी से तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ उन्हें मैदान में उतारा था. जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इससे पहले 2014 में बीजेपी के नंदकुमार सिंह चौहान के हाथों हार मिली थी.

अरुण यादव जीत की हैट्रिक से भले ही चूक गये हैं, लेकिन अब उन्हें हार की हैट्रिक से खुद को बचाना है. यदि वह हार की हैट्रिक से पहले ही सियासी गेंद को बाउंड्री के बाहर पहुंचा देते हैं तो उनके कौशल की दाद दी जाएगी और इस बहाने उनका पुराना घाव भी भर जाएगा क्योंकि इस बार भी दोनों पुराने प्रतिद्वंदी आमने-सामने हैं और अरुण के पास हिसाब चुकता करने का मुफीद माहौल और वक्त दोनों है.

Last Updated : May 18, 2019, 6:00 PM IST

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