बुरहानपुर। इस साल 2020 में कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन ने भारत की अर्थव्यवस्था को घुटनों पर ला दिया था. अप्रैल से लेकर जून के बीच में देश की इकनॉमी बहुत ही निचले स्तर पर पहुंच गई थी. जिसका असर देश के हर एक नागरिक पर देखा जा सकता था. एक ऐसी ही कहानी बुरहानपुर जिले के नेपानगर में रहने वाले शिक्षक विजय बावसकर की है. जो कोरोना से पहले खंडवा जिले के एक निजी स्कूल में बच्चों का भविष्य संवार रहे थे. लेकिन उन्हें कहां पता था कि कोरोना उनका रोजगार छीन लेगा और उन्हें अपने परिवार के भरण पोषण के लिए चाट व पानीपुरी का ठेला लगाना पड़ेगा. वैसे तो विजय बावसकर पेशे से एक शिक्षक है और वह इंग्लिश में एमए है.
11 सदस्यों के पेट पालने की जिम्मेदारी
चाट का ठेला लगाने वाले शिक्षक विजय बावसकर ने बताया कि उनके ऊपर परिवार के 11 सदस्यों का पेट पालने की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में उनके पास पैसे की जो भी सेविंग थी वो लॉकडाउन में खत्म हो गई थी. लेकिन जैसे ही देश में अनलॉक हुआ तो उसके पास घर चलाने के लिए पैसे नहीं बचे थे. उन्होंने बताया कि उनके सामने सबसे बड़ी समस्या परिवार का भरण पोषण करने की थी. शिक्षक विजय बावसकर ने कहा कि इस दौरान उन्होंने रोजगार तलाशने की कोशिश की लेकिन कहीं भी सफलता हाथ नहीं लगी.
हाथ लगी मायूसी
शिक्षक विजय बावसकर ने कहा कि उन्होंने शहर भर में काम तलाशा लेकिन उन्हें कहीं भी काम नहीं मिला. इसके बाद उन्होंने कुछ दिनों तक मजदूरी का काम करके अपने परिवार का पेट पाला. लेकिन उन्हें बाद में एहसास हुआ कि इस काम से उन्हें बेहद कम आमदनी होती थी. जिससे घर का खर्च चल पाना बेहद ही मुश्किल साबित हो रहा है. जिसके बाद उन्होंने कुछ कंपनियों में जॉब के लिए एप्लाई किया लेकिन वहां भी निराशा हाथ लगी.
एमपी टीईटी क्वालीफाई है विजय बावसकर
शिक्षक विजय बावसकर ने बताया कि उन्होंने काम तलाशने के दौरान कुछ कंपनियों में जॉब अप्लाई किया. लेकिन कंपनी ने यह कहकर जॉब देने से इंकार कर दिया कि आप एमपी टीईटी क्वालीफाई है. कंपनी ने कहा कि कल को उनकी जॉब लग गई तो वह कंपनी की जॉब छोड़ देंगे इसलिए शिक्षक को वहां से भी निराशा हाथ लगी.