भोपाल।देश में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी वाला राज्य मध्यप्रदेश है. 50 फीसदी से ज्यादा आबादी वाले आदिवासी गांवों के मामले में एमपी पहले नंबर पर है. आदिवासियों के हक में उनके लिए पेसा एक्ट लागू करने वाला अग्रणी राज्य है. मध्यप्रदेश...जिस राज्य में आदिवासी नायक इतिहास के पन्नों से ढूंढ कर तलाशे जा रहे हैं. स्टेशन से लेकर बस स्टैंड तक के नाम बदले जा रहे हैं. उसी राज्य में सीधी पेशाब कांड हुआ था. उसी राज्य में जंगल भी आदिवासी के लिए महफूज नहीं. रीवा में आदिवासी नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म की घटना ताजी है. इसी राज्य में 47 आदिवासी सीटों और 80 से ऊपर आदिवासी प्रभाव वाली सीटों पर कब्जे के लिए आदिवासी हमारे हैं की होड़ लगी है. सवाल ये है आदिवासी आखिर कब तक सियासत की प्रयोगशाला बना रहेगा.
आदिवासी सम्मान और सीधी पेशाब कांड: जिस राज्य में 15 नवम्बर आदिवासी गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता हो. जिस राज्य में आदिवासी के सम्मान में मैदान में खड़ी सरकार ताबड़तोड़ स्टेशन, बस अड्डों के नाम पर आदिवासी रानी और नायकों के नाम पर कर रही हो. आदिवासी का स्वाभिमान और सम्मान बचाने का दम दिखाया जा रहा हो. तब सामने आए सीधी पेशाब कांड के साथ हकीकत बयां हो जाती है. जंगल में रहने वालों से सलूक में जमीन पर कितना अंतर आया है. आदिवासियों के खिलाफ अपराध के मामले ढाई हजार से ज्यादा हैं और ये आंकड़ा एमपी को आदिवासी अत्याचार में टॉप टेन राज्यों में पहुंचाता है.
सत्ता आदिवासी बिना अधूरी:एमपी में आदिवासियों की जनसंख्या कुल एमपी की आबादी के 21 फीसदी बैठती है. एमपी में 47 ऐसी विधानसभा सीटें हैं जो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं और इनके अलावा 84 सीटें वो हैं जहां आदिवासी चुनाव के दौरान जीत हार तय करता है. असल में हर चुनाव में इन सीटों में राजनीतिक दलों को मिली जीत हार से तय हो जाती है कि सरकार किसके हाथ आएगी. जिसके साथ आदिवासी का समर्थन सत्ता उसके हाथ ही आती है. वैसे लंबे समय तक आदिवासी एमपी ही नहीं पूरे देश में कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा, लेकिन मध्यप्रदेश में आदिवासी ने अपना जनादेश समय समय पर बदला भी है.