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आखिर भोपाल ने क्यों की थी विलय में देरी, कैसे मनाया गया था यहां आजादी का जश्न - Bhopal merged into India on 26 August 1947

15 अगस्त 1947 को हिंदुस्तान को अंग्रेजों से मुक्ति मिल गई थी. पूरे हिंदुस्तान में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, लेकिन क्या आप जानते हैं, भोपाल रियासत सबसे आखिर में हिंदुस्तान में विलय हुई थी....

Story of Bhopal accession to India
भोपाल वियल की कहानी

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Published : Aug 15, 2020, 10:27 AM IST

भोपाल। 15 अगस्त 1947 को हिंदुस्तान को अंग्रेजों से मुक्ति मिल गई थी. पूरे हिंदुस्तान में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, लेकिन भोपाल रियासत सबसे आखिर में हिंदुस्तान में विलय हुई थी. इसलिए 15 अगस्त 1947 को भोपाल में आजादी का जश्न कैसे मनाया गया था, यह सबके जेहन में सवाल खड़ा होता है. आखिर ऐसा क्या था कि भोपाल हिंदुस्तान में शामिल नहीं होना चाहता था. आज स्वतंत्रता दिवस के 74वीं वर्षगांठ के मौके पर हम बताएंगे इन सभी सवालों के जबाव..

आखिर भोपाल ने क्यों की थी विलय में देरी

अभी भी लोगों में दो राय
भोपाल के भारत में सबसे आखरी में शामिल होने को लेकर एक पक्ष कहता है कि भोपाल नवाब पाकिस्तान से जुड़ना चाहते थे, लेकिन दूसरा पक्ष कहता है कि भोपाल नवाब चेंबर ऑफ प्रिंसेस के चांसलर होने के कारण सबसे आखिर में हिंदुस्तान का हिस्सा बने थे. दूसरे पक्ष की बात में दम इसलिए लगता है क्योंकि गांधी-नेहरू की सलाह पर उन्होंने पहले भी तमाम रियासतों का भारत में विलय कराने में मदद की थी. फिर अंत में भोपाल हिंदुस्तान में शामिल हुआ था.

भोपाल विलय में देरी रणनीति का हिस्सा
आजादी की लड़ाई में नवाब ने हर तरह की मदद की थी, लेकिन वह चेंबर ऑफ प्रिंसेस के चांसलर होने के नाते वे कई रियासतों की भारत में शामिल न होने की बात पर संसय में थे. ऐसा नहीं था कि भोपाल भारत की आजादी के खिलाफ या भारत में वियल के खिलाफ था, लेकिन नबाव ने रणनीतिक तरीके से अपने आप को रोक रखा था. अगर वह पहले भोपाल रियासत का भारत में विलय करा देते, तो चेंबर ऑफ प्रिंसेस टूट जाता और सब लोग इधर-उधर हो जाते.

मुंबई की गवर्नरशिप को भारत के लिए ठुकराया
भोपाल के नवाब हमीदाउल्ला खान के पाकिस्तान में जाने वाली बातों पर इतिहासकार डॉ. इफ्तेखार कहते हैं कि नवाब हमीदुल्ला बिल्कुल पाकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहते थे. उनके लिए तो एक जमाने में मुंबई की गवर्नरशिप भी ऑफर की गई थी, लेकिन उन्होंने यह कहकर नकार दिया था कि जो रियासत हमारे सामने हाथ जोड़ती थी, हम क्या उनके सामने हाथ जोड़ेंगे. तभी से उन्होंने राजनीति से दूर रहने का फैसला किया था और 1947 में ही चेंबर ऑफ प्रिंसेस के चांसलर के पद से इस्तीफा दे दिया था. देश की आजादी के बाद वह चिकलोद स्थित अपने शिकारगाह में रहने लगे थे, जहां उन्होंने खेती पर अपनी मन रमा लिया था.

1949 में भारत का हुआ भोपाल
26 अगस्त 1947 को भोपाल ने भारत में शामिल होने का ऐलान किया था, लेकिन इसके बाबजूद इसके लिए कोई औपचारिकता नहीं की गई. सैद्धान्तिक सहमति के बावजूद के बाबजूद भी भोपाल के विलय में दो साल का वक्त लग गया. नबाव के इस रवैये को लेकर दिसंबर 1948 जब वे हज गए हुए थे, तब भोपाल में उनके खिलाफ एक बड़ा आंदोलन शुरू हुआ, जिसका नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ शंकर दयाल शर्मा ने किया, फिर सरदार पटेल ने मामले में हस्ताक्षेप किया और 1 जून 1949 को भोपाल भारत का हिस्सा बन गया.

जुमेराती पोस्ट ऑफिस पर फहराया गया था झंडा
भोपाल नवाब के सचिव के परिजन और इतिहासकार डॉ इफ्तिखार बताते हैं, कि यह सही बात है कि 15 अगस्त 1947 तक भोपाल को भारत में विलय नहीं हुआ था. भोपाल नवाब ने रिपब्लिक ऑफ इंडिया को ज्वाइन नहीं किया था, लेकिन भोपाल में आजादी का जश्न वैसे ही मनाया गया था, जैसा दूसरी जगह पर मनाया गया था. भोपाल के जुमेराती पोस्ट ऑफिस पर झंडा फहराया गया था. उस समय आजादी के जश्न के लिए तमाम इंतजाम भी किए गए थे. कहा जाता है भोपाल के तत्कालीन नवाब हमीदुल्लाह खान ने भी आजादी का समर्थन किया था.

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