भोपाल।मध्य प्रदेश में 230 सदस्यों वाली विधानसभा में से 28 सीट यानि 12 फीसदी सीटों पर उपचुनाव हैं. पीठ में खंजर घोपने, आइटम, महाराज का मान-सम्मान, गद्दारी, इमानदारी से लेकर कमलनाथ की जय-जय जैसे बयान इन दिनों छाए हुए हैं. कमलनाथ सात महीने पहले अपनी सरकार जाने के बाद वापसी की टकटकी लगाए बैठे हैं, तो वहीं उपचुनाव में कांग्रेस से बगावत करने वाले और बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख दांव पर है. 28 सीटों में से 16 सीटें सिंधिया के प्रभाव वाली हैं, जहां उनकी अग्निपरीक्षा है. यही नहीं ये उपचुनाव शिवराज की सरकार रहने और जाने का भी है.
कठिन है मुकाबला
मध्य प्रदेश में होने वाले उपचुनाव बीजेपी के लिए बेहद अहम माने जा रहे हैं. ये चुनाव कांग्रेस-बीजेपी दोनों के लिए ही बहुत अहम हैं. क्योंकि एक ओर जहां सत्ता पर बैठी बीजेपी अपनी सरकार बचाने में जुटी हुई हैं, वहीं 15 महीने में गिरी सरकार अपनी वापसी की राह देख रही हैं. सत्ता के लिए दोनों ही पार्टियां साम, दाम, दंड, भेद सब अपना रहे हैं. एक ओर जहां बीजेपी और कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए नेता कांग्रेस की 15 महीने की सरकार के कार्यकाल में कोई काम नहीं किया. यहां तक की संकल्प पत्रों में की गई घोषणाओं पर भी अमल नहीं किया, इस पर जोर दे रहे हैं, तो वहीं कांग्रेस 'बिकाऊ नहीं टिकाऊ चाहिए' की रणनिति अपना रहा है.
MP उपचुनाव के अहम पड़ाव
मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग होगी. जिसके नतीजे बिहार के नतीजों के साथ 10 नवंबर को आएंगे. प्रदेश की 29 विधानसभा सीटें खाली हैं, जिनमें से 28 पर विधानसभा चुनाव हो रहा है. इन 28 में से 27 सीटों पर पहले कांग्रेस का कब्जा था. वहीं एक सीट विधायक की मौत से खाली हुई.
गौरतलब है कि मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे. सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही उनके समर्थक विधायकों ने भी विधायकी से इस्तीफा दे दिया था और उसके बाद बीजेपी का दामन थाम लिया था. इस तरह विधानसभा की एक के बाद एक 25 सीटें खाली होती गईं और 3 सीटें विधायकों के निधन से खाली हो गईं.
MP का चुनावी गणित