भोपाल। झाबुआ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने रिकॉर्ड जीत हासिल कर बड़ी सफलता अर्जित की है. पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया यह चुनाव जीते हैं. इस चुनाव की जीत के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ के प्रबंधन और कांतिलाल भूरिया के चेहरे की बड़ी भूमिका मानी जा रही है. लेकिन इस जीत के पीछे दो चेहरे ऐसे भी हैं कि अगर वह कांग्रेस के साथ न होते तो विधानसभा चुनाव की तरह कांग्रेस उपचुनाव भी हार सकती थी. यह दो चेहरे हैं जेवियर मेडा और कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा.
यह माना जा रहा है कि अगर यह दोनों चेहरे बगावत कर जाते या भितरघात करते तो परिणाम विधानसभा चुनाव की तरह विपरीत हो सकते थे. लेकिन झाबुआ के रण में उतरने से पहले सीएम कमलनाथ इन दोनों नेताओं को मनाने में सफल रहे. उसी का नतीजा है कि कांग्रेस ने झाबुआ सीट पर जीत हासिल की है.
कांग्रेस नेताओं के मुताबिक मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इन दोनों नेताओं को निगम मंडल नियुक्तियों में प्रमुख पद दिए जाने का वादा किया था और अब वादा निभाने का समय आ चुका है.
कौन है जेवियर मेड़ा
जेवियर मेड़ा के कांतिलाल भूरिया की जीत में योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है. क्योंकि अगर जेवियर मेडा विधानसभा चुनाव की तरह बगावत करके उपचुनाव में भी खड़ी हो गए होते तो विधानसभा चुनाव की तरह कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता. कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का कारण निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खड़े हुए जेवियर मेड़ा बने थे. दरअसल विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने झाबुआ सीट से कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रम भूरिया को प्रत्याशी बनाया था. इस बात से नाराज जेवियर मेड़ा ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन भर दिया था और चुनाव में जेवियर मेडा करीब 35 हजार वोट हासिल करने में कामयाब रहे थे. इतने बड़े पैमाने पर जेवियर मेडा को वोट मिलने पर कांग्रेस प्रत्याशी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. जेवियर मेडा के वोट काटने के कारण कांग्रेस प्रत्याशी प्रत्याशी विक्रम भूरिया भाजपा प्रत्याशी जीएस डामोर से 10 हजार मतों से हार गए थे. तत्कालीन परिस्थितियों में तो कांग्रेस ने जेवियर मेडा को निष्कासित कर दिया था. लेकिन लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जेवियर मेड़ा की कांग्रेस में वापसी भी हो गई.
विधानसभा उपचुनाव की स्थिति बनने पर सीएम कमलनाथ को अंदाजा लग गया था कि अगर जेवियर मेडा पार्टी का साथ नहीं देंगे, तो यह सीट फिर से हाथ से निकल सकती है। ऐसी स्थिति में कमलनाथ ने जेवियर मेडा को मनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी और निगम मंडल नियुक्ति में अहम पद दिए जाने का वादा कर उन्हें कांतिलाल भूरिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के लिए तैयार कर दिया। जेवियर मेडा ने भी मुख्यमंत्री से किया वादा निभाया और कांतिलाल का साया बनकर उन को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई.
'जयस' का झाबुआ चुनाव में योगदान
झाबुआ उपचुनाव के पहले आदिवासी युवा संगठन 'जयस' के नेता और कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा भी जयस की तरफ से उम्मीदवार झाबुआ उपचुनाव में उतारने की बात कर रहे थे अगर जयस झाबुआ उपचुनाव में अपना उम्मीदवार उतारता तो कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती थी. क्योंकि जयस संगठन का आदिवासी युवाओं पर गहरा असर है और मालवा निमाड़ इलाके में जयस की मजबूत पकड़ भी है. उपचुनाव के पहले डॉ. हीरालाल अलावा ने जयस की तरफ से उम्मीदवार उतारे जाने की बात की थी. 8 सितंबर को झाबुआ में जयस का महासम्मेलन भी आयोजित किया गया था. जिसमें यह फैसला लिया जाना था कि झाबुआ चुनाव में जयस अपना उम्मीदवार उतारेगी कि नहीं. इसके पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ ने डॉ.हीरालाल अलावा को समझाकर और उन्हें भविष्य में बड़ा पद दिए जाने का वादा कर मनाने में कामयाब रहे. ऐसी स्थिति में कांग्रेस की राह में मुश्किल खड़ी करने वाले दो बड़े चेहरे कांग्रेस के साथ खड़े नजर आए और कांग्रेस रिकार्ड मतों से चुनाव जीतने में सफल रही.
कांग्रेस के प्रवक्ता अब्बास हफीज खान ने बताया कि कमलनाथ की तरफ से तोहफा, मुझे लगता है कि कांग्रेस के हर कार्यकर्ता, जो निष्ठावान कार्यकर्ता है, जिन्होंने भी मेहनत की है, झाबुआ ही नहीं पूरे प्रदेश के अंदर मेहनत की है, ऐसे हर कार्यकर्ता को मिलना चाहिए. वह सब इसके हकदार हैं जो बरसों से संघर्ष करते हुए आ रहे हैं. हमारे वरिष्ठ नेता भी हैं. जेवियर मेडा ने झाबुआ उपचुनाव में बहुत मेहनत की है. जाहिर है, वहां उनका वहां जनाधार है. कांतिलाल भूरिया के साथ मिलकर काम किया है तो उसका उनको कुछ ना कुछ उपहार मिलना चाहिए.
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि कमलनाथ जी ने सबके लिए कुछ ना कुछ करने का सोच कर रखा है. ताकि सब लोग जनता की सेवा कर सके. जो जनता की सेवा करना चाहते हैं. कमलनाथ जी उनको जिम्मेदारी देकर तोहफा देंगे. हालांकि यह निर्णय मुख्यमंत्री कमलनाथ को लेना है और वह जल्दी ही इस पर निर्णय लेंगे.