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जारी है बूंद-बूंद का संघर्ष, आज भी प्यासा है बुंदेलखंड - bundelkhand news

बुंदेलखंड के ज्यादातर इलाकों में लोग रोज अपनी जिंदगी बचाने की जंग लड़ते हैं. ये जंग है पानी के लिए. कहा जाता है कि जल है तो जीवन है. लेकिन बुंदेलखंड के अधिकांश इलाकों में लोग पानी के लिए जूझ रहे हैं. देखें ETV भारत पर प्यासा बुंदेलखंड की कहानी.

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प्यासा बुंदेलखंड

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Published : Jun 21, 2020, 1:27 PM IST

Updated : Jun 21, 2020, 2:10 PM IST

भोपाल।प्री-मानसून की दस्तक के बाद भी बुंदेलखंड के अधिकांश इलाकों में लोग बूंद-बूंद के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ग्रामीण अंचलों में आलम ये है कि लोगों को कोसों मील का सफर तय कर अपनी प्यास बुझानी पड़ती है. शहरों में किसी तरह से पानी का अरेंजमेंट तो हो जाता है लेकिन गांव प्यासे हैं. पानी के लिए न सिर्फ ग्रामीण कई मील पैदल चलते हैं, बल्कि अपनी जान भी जोखिम में डालते हैं.

हालात चाहे छतरपुर के देखें या सागर के, पन्ना के ग्रामीण इलाकों में नजर घुमाएं या टीकमगढ़ में जाएं. पानी के लिए ग्रामीणों का संघर्ष कई सालों से लगातार जारी है. एक ओर जहां पहाड़ियों में बसे आदिवासी पानी की एक-एक बूंद के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं वहीं समतल में रहने वालों लोगों के घरों के हैंडपंप से पानी नहीं हवा निकल रही है.

जारी है बूंद-बूंद का संघर्ष

छतरपुर में जिंदगी पर भारी जल

बुंदेलखंड में मानसून ने दस्तक दे दी है, लेकिन ग्रामीण अंचलों में आज भी पानी की समस्या है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. छतरपुर जिले से महज 17 किलोमीटर दूर छोटे से गांव कर्री में पहाड़ी के ऊपर रहने वाले कुछ आदिवासी पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. रहवासियों को अपनी जान जोखिम में डालकर 2 किलोमीटर नीचे पहाड़ी से उतर कर पानी भरने जाना पड़ता है.

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जबलपुर में ETV भारत की खबर का असर

जबलपुर के सिहोरा विधानसभा क्षेत्र के रामेहपुरा गांव के ग्रामीण आदिवासियों को जल्द ही अब पीने का साफ पानी मिल सकेगा. साथ ही उन्हें पीने के पानी के लिए सैकड़ों फीट नीचे घाट पर जाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. ये कहना है जबलपुर संभाग कमिश्नर महेश चंद्र चौधरी का.

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पन्ना में भारी जल संकट

पन्ना की पवई विकासखंड की ग्राम पंचायत मुड़वारी में पानी के लिए त्राहिमाम मचा है. पानी के लिए समूचे गांव की जनता परेशान है. पानी की बूंद-बू्ंद के लिए ग्रामीण तरस रहे हैं, लेकिन जनप्रतिनिधि और प्रशासन अब तक अपनी आंख-कान बंद करके बैठा है. गांव के लोग 3 किलोमीटर दूर स्थित केन नदी के पानी को लाने और दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. नदी के जल में पशु नहाते हैं, आम लोग स्नान करते हैं, जिससे जल पीने योग्य बिल्कुल नहीं है. दूषित जल को पीने से ग्रामीणों के बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है. नदी के अलावा गांव के लोगों को पड़ोसी गांव सथनियां से भी पानी लाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

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टीकमगढ़ में उत्तर प्रदेश से लाना पड़ता है पानी

टीकमगढ़ के अटरिया गांव, जो एमपी-यूपी बॉर्डर से लगा है. यहां पानी की समस्या इतनी भयावह है कि लोग पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के पथराई गांव से पानी लाने को मजबूर हैं. इस गांव में करीब 300 परिवार रहते हैं, सभी परिवारों का यही हाल है.

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बुंदेलखंड में पानी की किल्लत वाले इलाकों की लिस्ट काफी लंबी है. प्रशासन से चाहे लोग लाख गुहार लगाएं, लेकिन हर साल भीषण गर्मी में सिर्फ निरीक्षण और वादों का तोहफा ही मिलता है, पानी नहीं. हर साल गर्मी आकर अपना भीषण प्रकोप दिखाकर चली जाती है, और लोग पानी की समस्या से जूझते ही रह जाते हैं. इंतजार फिर अगले साल का होता है.

Last Updated : Jun 21, 2020, 2:10 PM IST

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