भोपाल। उत्तर भारत के विभिन्न इलाकों में वट सावित्री का व्रत पूरी धूमधाम से मनाया जाता है वह ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर होता है उसी तर्ज पर दक्षिण और पश्चिम भारत में वट पूर्णिमा की रिवायत है. यहां भी सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए ये व्रत रखती हैं. इस बार 24 जून 2021 (Vat Purnima Vrat 2021) को वट पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है. विशेष तौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा समेत दक्षिण भारत में मनाया जाता है.
पूर्णमासी का है विशेष स्थान (Purnima Importance)
इस तिथि को जेठ पूर्णिमा या जेठ पूर्णमासी कहा जाता है. हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन पवित्र नदी या जलकुंड में स्नान, व्रत एवं दान-पुण्य के काम करने की मान्यता है. इस दिन स्नान, व्रत एव दान-पुण्य के कार्य करने से जातकों को शुभ फल प्राप्त होते हैं. यह तिथि ज्येष्ठ माह की अंतिम तिथि होती है. इसके बाद आषाढ़ माह प्रारंभ हो जाता है.
क्या है विशेष संयोग (Vishesh Sanyog On Purnima)
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन खास संयोग बन रहा है. दरअसल, ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि गुरुवार के दिन है. गुरुवार का दिन और पूर्णिमा तिथि ये दोनों भगवान विष्णु जी को प्रिय हैं. इसी कारण इस साल पूर्णिमा तिथि अत्यंत विशेष है.
वट पूर्णिमा की तिथि, मुहूर्त (Vat Savitri Tithi and Muhurat)
मान्यता के अनुसार, वट पूर्णिमा का व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को रखा जाता है. इस वर्ष ये तिथि 24 जून को प्रातः 3.32 बजे से प्रारंभ हो कर 25 जून को रात्रि 12.09 बजे समाप्त होगी. वट पूर्णिमा का व्रत 24 जून को रखा जाएगा तथा व्रत का पारण 25 जून को होगा.
पूर्णिमा व्रत विधि (Purnima Vrat Vidhi)
पूर्णिमा (Vat Purnima Vrat 2021) के दिन सुबह स्नान से पहले व्रत का संकल्प लें. पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पूर्व वरुण देव को प्रणाम करें.स्नान के पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए. स्नान से निवृत्त होकर भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए. इस दिन पीले वस्त्र पहनना और पीला सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है. पूजा के लिए बरगद का पेड़, सावित्री-सत्यवान और यमराज (Savitri Satyvan and Yamraj Katha) की मूर्ति रखें. बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, फूल और मिठाई चढ़ाएं. पेड़ में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगें. अत: वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें. इसके बाद हाथ में काला चना लेकर इस व्रत की कथा सुनें.अंत में ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें.अंत में वट वृक्ष और यमराज से घर में सुख, शांति और पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करें.
क्या करें क्या न (Dos and dont)
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय फलाहार करें.
- इस व्रत को अगले दिन खोला जाता है.
- ध्यान रखें कि व्रती को चतुर्दशी के दिन से ही तामसी भोजन का त्याग कर देना चाहिए.
ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि का महत्व और कथा (Vat Purnima Vrat 2021 katha)
वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार सावित्री के पति अल्पायु थे. जिस बात की जानकारी सावित्री को भी थी. एक दिन अचानक सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी. सावित्री अपना भविष्य समझ गई तथा अपनी गोद का सिरहाना बनाकर अपने पति को लिटा लिया. उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है. धर्मराज सत्यवान के जीवन को जब लेकर चल दिए तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं. यमराज ने कहा कि पति के प्राणों के अलावा जो भी मांगना है मांग लो और लौट जाओ. सावित्री ने अपने को सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा. यमराज ने तथास्तु कहा और आगे चल दिए. सावित्री फिर भी उनके पीछे-पीछे चलती रहीं. उसके इस कृत से यमराज नाराज हो जाते हैं. यमराज को क्रोधित होते देख सावित्री उन्हें नमन करते हुए उन्हें कहती है, “आपने मुझे सौ पुत्रों की मां बनने का आशीर्वाद तो दे दिया लेकिन बिना पति के मैं मां किस प्रकार से बन सकती हूं, इसलिये आप अपने तीसरे वरदान को पूरा करने के लिए अपना कहा पूरा करें.”
सावित्री की पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राण को अपने पाश से मुक्त कर दिया. सावित्री सत्यवान के प्राण लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची और सत्यवान जीवित होकर उठ बैठे. मान्यता है कि वट सावित्री व्रत (Vat Purnima Vrat 2021) करने और इसकी कथा सुनने से वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार की बाधा नहीं आती.