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भोपाल: दुलदुल 'घोड़ी' नृत्य और बुंदेली लोक गायन की बेजोड़ प्रस्तुति - Academy Bundeli Folk Singing

आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा आयोजित मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में बहुविध कलानुशासन की गतिविधियों के तहत, बुंदेली लोक गायन और दुलदुल घोड़ी नृत्य की प्रस्तुति हुई.

Duldul mare dance
दुलदुल घोड़ी नृत्य

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Published : Jan 15, 2021, 10:53 PM IST

भोपाल।मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में बहुविध कलानुशासन की गतिविधियों के तहत बुंदेली लोक गायन और कलाकार राजमणि तिवारी एवं साथियों द्वारा दुलदुल घोड़ी नृत्य की प्रस्तुति हुई. यह प्रस्तुति आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा आयोजित की गई. प्रस्तुति की शुरुआत में कपिल चौरसिया और साथियों द्वारा बुंदेली लोक गायन में ईसुरी चौकड़ी हरदौल लाला गीत, जेवनार गीत, श्रंगार लोकगीत, खयाल गीत आदि बुंदेली लोकगीत प्रस्तुति हुई. दूसरी प्रस्तुति में राजमणि तिवारी और साथियों द्वारा दुलदुल घोड़ी नृत्य की प्रस्तुति हुई. जिसमें राजमणि तिवारी, रत्नेश गोस्वामी एवं राजवीर तिवारी ने नृत्य की प्रस्तुति दी.

दुलदुल घोड़ी नृत्य

दुलदुल नृत्य के बारे में

भारत में पुरातन काल से रूप धारण करके नृत्य करने की परंपरा है. मध्य भारत में नृत्य के बिना कोई मेला त्यौहार, समारोह, संस्कार को संपूर्ण नहीं माना जाता है. भारत में दुलदुल घोड़ी लोक नृत्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि सभी जगह प्रमुखता से किया जाता है. दुलदुल घोड़ी नृत्य को घोड़ी नृत्य, लिल्ली घोड़ी नृत्य आदि नामों से भी जाना जाता है. मनुष्य जीवन के संस्कारों के कार्यक्रम में दुलदुल घोड़ी नृत्य का प्रमुख स्थान है. इस नृत्य को अधिकतर निम्न और मजदूर वर्ग के कलाकारों द्वारा किया जाता है.

दुलदुल घोड़ी नृत्य में इनकी भूमिका

प्रस्तुति में हारमोनियम पर प्रमोद साहू, ढोलक पर रोहन वर्मा, तबले पर रविंद्र मिश्रा, नगरिया पर रामहित साकेत, खंजनी पर मिथुन साकेत और झांझ पर जगन्नाथ साकेत ने बेजोड़ संगति दी.

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