भोपाल।प्रदेश सरकार शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और नवाचार के चाहे लाख दावे करे लेकिन प्रदेश में शेक्षणिक संस्थानों के हालात जस के तस है. शिक्षकों की कमी के चलते प्रदेश के महाविधालयों ओर विश्वविधालयों में महत्वपूर्ण पद बाबू और कर्मचारियों के भरोसे चल रहे हैं. मध्यप्रदेश में कुल 8 शासकीय विश्वविधलय और 516 शासकीय महाविद्यालय है. वहीं 20 ओटोनोमोस कॉलेज है, इसमें 60% महाविद्यालयों में रेगुलर फैकल्टी नहीं है. राजधानी भोपाल में ही 8 सरकारी कॉलेज है जिसमें केवल 3 महाविद्यालयों में स्थायी प्राचार्य है, बाकी सभी कॉलेजो में प्रभारी प्राचार्यो के भरोसे गाड़ी चल रही है. महाविधालयों में शिक्षकों की कमी के चलते महतवपूर्ण पद खाली पड़े है. कर्मचारी और बाबू इन पदों को संभाल रहे हैं और इसका खामियाजा प्रदेश के लाखों छात्र भुगत रहे हैं.
उच्च शिक्षा में खाली पड़े हज़ारों पद
राजधानी में स्थित अटल बिहारी वाजपई हिंदी विश्वविधलय में 33 गेस्ट फेकल्टी है जबकि विवि में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए 18 पद खाली पड़े है इसी तरह बरकततुल्ला विश्वविधलय में भी शिक्षक सहित लाइब्रेरियन के 13 पद खाली है. वहीं ओवर ऑल कॉलेजों की बात की जाए तो वर्तमान में उच्च शिक्षा में प्राचार्यो के 231 पद खाली है. वहीं प्रोफेसर्स के 412 असिस्टेंट प्रोफेर्स के 4321, ग्रंथपाल के 210 और रजिस्ट्रार के 32 पद खाली है. बावजूद इसके उच्च शिक्षा में पिछले चार सालों में केवल 10% भर्तियां हुई है. जिसमें कांग्रेस सरकार में असिस्टेंट प्रोफेसर के 300 पदों पर भर्ती हुई थी बीजेपी शासनकाल में भर्ती के लिए नोटिफिकेशन जारी हुआ, लेकिन कोरोना का हवाला देते हुए इस पर रोक लग गई. सरकार ने नए साल में भर्ती करने की बात कही है.
बाबू और कर्मचारियों के हवाले महत्वपूर्ण पद