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अब आदिम जाति कल्याण केंद्र का नाम होगा जनजातीय कार्य मंत्रालय, CM शिवराज सिंह ने किया ये ऐलान

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शहीद बिरसा मुंडा की जयंती को अब हर साल गौरव दिवस के रुप में मनाने की घोषणा की है. ये घोषणा उन्होंने आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा की जंयती पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान की है.

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बिरसा मुंडा की जंयती

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Published : Nov 15, 2020, 9:37 PM IST

भोपाल।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिरसा मुंडा की जयंती को हर साल गौरव दिवस के रुप में मनाने की घोषणा की है. सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ये घोषणा स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा की जंयती पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान की है. उन्होंने कहा की हमारी जनजाति परंपरा भारत की मूल परंपरा है. इसको कभी मुरझाने नहीं दिया जाएगा. कुछ लोग हमें बांटने की कोशिश कर रहे हैं. हम सब एक हैं हमारी संस्कृति बहुरंगी है. साथ ही आदिम जाति कल्याण केंद्र का नाम भी बदलकर जनजातीय कार्य मंत्रालय रखने का सीएम ने एलान किया है.

बिरसा मुंडा की जंयती पर आयोजित कार्यक्रम पहुंचे CM शिवराज

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषण में कहा कि 'हम जनजातीय नाम को सम्मान देंगे. यह भारत की मुख्य परंपरा हैं और मुख्य धारा हैं कुछ लोग हमें बांटने की कोशिश कर रहा है. सामाजिक समरसता के मूल मंत्र के साथ हम अपने जनजाति भाइयों और बहनों को उनका अधिकार दिलाएंगे, क्योंकि यह लोग बहुरंगी हैं. हमारी संस्कृति उनके साथ है. हम सब एक हैं अलग-अलग रंग के फूल हर फूल की अपनी सुंदरता अपनी सुगंध है. जनजाति धारा को यूं मुरझाने नहीं दिया जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि 'आज से आदिम जाति कल्याण केंद्र का नाम बदलकर जनजातीय कार्य मंत्रालय किया जा रहा है.'

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कौन हैं बिरसा मुंडा ?

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी के सुदूरवर्ती इलाका उलिहातू गांव में हुआ था. आदिवासी दंपत्ति सुगना मुंडा और करमी मुंडा के घर जन्में बिरसा मुंडा भारतीय इतिहास में एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने अपने क्रांतिकारी विचार से उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलने में अहम भूमिका निभाई थी.

'अबुआ दिशुम-अबुआ राज', यानि हमारा देश- हमारा राज का नारा देने वाले बिरसा मुंडा के पिता सुगना मुंडा और माता करमी मुंडा खेती-किसानी करते थे. उस समय मुंडा एक छोटा जनजातीय समूह था, जो छोटा नागपुर पठार पर बसा था. साल्गा गांव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा जीईएल चर्च विद्यालय में पढ़ाई की. इस दौर में अंग्रेजों का शोषण चरम पर था. किशोर बिरसा हमेशा आदिवासियों के उत्थान को लेकर सोचते रहते थे. आदिवासियों के खोये सम्मान को भी वापस दिलाना चाहते थे. जिसको लेकर वह अंग्रेजों की लागू की गई जमींदारी प्रथा और राजस्व व्यवस्था के साथ-साथ अपनी हक की लड़ाई छेड़ दी. यह आदिवासी अस्मिता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था.

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