भोपाल। जंगल में अपनी बादशाहत चलाने वाले बाघ की दुनिया भी बेहद रोचक है. इन्हें जंगल में घूमते देखना जितना रोमांच पैदा करता है, इनसे जुड़े तथ्य भी उतने ही रोचक होते हैं. जब भी टाइगर की गणना की बात होती है, तो सवाल उठता है कि आखिर एक्सपर्ट टाइगर की पहचान कैसे करते हैं. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि टाइगर के शरीर की धारियां ही इनकी पहचान होती हैं और इसके आधार पर ही वन अमला इनकी कोडिंग करते हैं. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के मुताबिक टाइगर का अपना अलग मिजाज होता है वह शिकार भी चुनकर करता है.
दुनिया के हर टाइगर की स्ट्रिप होती है अलग:वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट सुदेश वाघमारे बताते हैं कि इंसानों के फिंगर प्रिंट की तरह टाइगर की पहचान उनकी स्ट्रिप होती हैं. दुनिया में एक इंसान के फिंगर प्रिंट दूसरे इंसान से मेल नहीं खाते. कमोवेश यही स्थिति टाइगर के मामले में होती है. भारत ही नहीं दुनिया के किसी भी बाघ के शरीर की काली पट्टियां यानी स्ट्रिप एक समान नहीं होतीं. भारत के टाइगर की स्ट्रिप अफ्रीका के टाइगर से मेल नहीं खाती. टाइगर की स्ट्रिप के आधार पर उन टाइगरों की पहचान की जाती है. वन अमला इसके आधार पर उनकी कोडिंग करता है.
बाघ के धारियों की खासियत: गहरे नारंगी रंग पर काली पट्टियां बाघ को शिकार में मदद करती है. घना जंगल हो या सूखा घास का मैदान टाइगर की काली पट्टियां उसे आसानी से घास में छुपा देती हैं. आमतौर पर टाइगर कम रोशनी में शिकार करते हैं, ऐसे में टाइगर के रंग की वजह से शिकार उसे आसानी से दूर से देख नहीं पाता. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट कहते हैं कि टाइगर का अपना अलग मिजाज होता है. वह शेर की तरह झुंड में शिकार नहीं करता. वह शिकार भी अपनी पसंद कर करता है. यदि शिकार उसकी पसंद का न हो, तो टाइगर उसे छूता भी नहीं.