भोपाल। साल 2020 मध्यप्रदेश कांग्रेस के लिए एक ऐसा साल है कि कांग्रेस इसे एक बुरे सपने की तरह भूलना तो चाहेगी,लेकिन भूल नहीं पाएगी. अपनों की बगावत से 15 साल बाद बनी सरकार का पतन हो गया. प्रदेश में हुए 28 उपचुनाव में कमलनाथ के नेतृत्व में पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन परिणाम आशा अनुरूप नहीं मिले. अब कांग्रेस में संगठन और विधानसभा स्तर पर परिवर्तन की मांग मुखर हो रही है. लेकिन साल के जाते-जाते यह उम्मीद भी पूरी नहीं हो पाई है. इतना जरूर हुआ है कि 7 साल बाद हुए युवा कांग्रेस के चुनाव में आदिवासी नेतृत्व के रूप में डॉ विक्रांत भूरिया कांग्रेस को नया चेहरा मिला है. 2020 की गलतियों से सबक लेकर कांग्रेस 2021 में नई उम्मीदों के साथ आगे बढ़ेगी और 2023 में फिर सरकार बनाने के लिए काम करेगी.
मार्च महीने में अपनों की बगावत से गिर गई कमलनाथ सरकार
दिसंबर 2018 में जब कमलनाथ सरकार अस्तित्व में आई थी. तो 15 साल बाद विपक्ष में बैठ रही, बीजेपी हमेशा सरकार गिराने की चुनौती देती थी. लेकिन कांग्रेस ने भी नहीं सोचा होगा कि यह सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता की बगावत के कारण गिरेगी. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस से बगावत कर दी और होली के दिन भाजपा की सदस्यता ले ली. करीब 15 दिनों तक चले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद आखिरकार 20 मार्च को कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया और शिवराज सरकार एक बार फिर अस्तित्व में आई.
सिंधिया गुट के टूटने के बाद भी नहीं रुका विधायकों के टूटने का सिलसिला
ज्योतिरादित्य सिंधिया के 16 विधायक और अन्य छह कांग्रेस विधायक के इस्तीफे से कमलनाथ सरकार का पतन हो गया. लेकिन अपनी सरकार को भविष्य में सुरक्षित रखने के लिए बीजेपी ने कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने का सिलसिला जारी रखा. सरकार बनाने में कामयाब रही बीजेपी विधायकों को तोड़ने का सिलसिला जारी रखा और चार और कांग्रेसी विधायक तोड़ने में कामयाब रही. जिनमें सुमित्रा कासडेकर, नारायण पटेल, प्रद्युम्न सिंह लोधी और राहुल लोधी के नाम है.
दमदारी से लड़ा उपचुनाव, आशा अनुरूप नहीं आए परिणाम
कोरोना काल में हुए उपचुनाव में कमलनाथ की रणनीति के चलते कांग्रेस ने पूरी दमदारी के साथ चुनाव लड़ा. कांग्रेस की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाने वाले बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर सामने थे और कांग्रेस ने उन्हें गद्दार कहकर जनमानस बनाने में सफल रही. चुनावी माहौल कांग्रेस के पक्ष में नजर भी आया, लेकिन चुनाव के परिणाम अप्रत्याशित आए और 28 में से कांग्रेस सिर्फ 9 सीट जीत पाई.
संगठन में उठी फेरबदल और नेता प्रतिपक्ष बदले जाने की मांग
उपचुनाव तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका कमलनाथ निभा रहे थे. उपचुनाव के परिणाम के बाद संगठन को मजबूत करने के लिए संगठन में फेरबदल और कमलनाथ की दोहरी भूमिका को कम करने की मांग जोर पकड़ने लगी. कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने तैयार हैं, लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे. उम्मीद की जा रही थी कि दिसंबर के आखिरी हफ्ते में आयोजित विधानसभा सत्र में नया नेता प्रतिपक्ष होगा, लेकिन मामला टलता हुआ नजर आ रहा है.
कांग्रेस में नजर आई नेतृत्व शून्यता
वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह कहते हैं कि असल में कांग्रेस के लिए 2020 घाटे वाला साल है. यूं ही कह सकते हैं कि घाटा दर घाटा हुआ है. एक तो कोई नई लीडरशिप उनके पास नहीं आ पाई. लोग उम्मीद कर रहे थे कि मार्च 20-30 में जब सरकार गिरी, तो कोई नया नेतृत्व संगठन या विधानसभा में नया नेता मिलेगा. 28 उप चुनाव मध्यप्रदेश में पहली बार हुए, जिसमें कांग्रेस सिर्फ 9 सीटें जीत पाई,बाकी बीजेपी ने जीत ली। सवाल यह है कि कांग्रेस का नेतृत्व ना तो विधानसभा में का कोई नया नेता चुन पा रहा है और कांग्रेस संगठन के अध्यक्ष भी कमलनाथ बने हुए हैं. एक तरह से कांग्रेस में नेतृत्व शून्यता में चल रही है.
नए साल में नेता प्रतिपक्ष मिलने की उम्मीद
2021 की शुरुआत की माने, तो साल के अंत में युवा कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में विक्रांत भूरिया मिले हैं. जो पूर्व केंद्रीय मंत्री और विधायक कांतिलाल भूरिया के पुत्र हैं. नए साल में उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस को विधानसभा में नया नेता प्रतिपक्ष मिल जाएगा. क्योंकि जो संकेत मिले हैं कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष के पद से मुक्त नहीं होना चाहते हैं. हमें लगता है कि प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय की अभी रणनीति चलेगी.
2020 को कभी भूल ना पाएगी कांग्रेस
वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे कहते हैं कि जिस तरह कोरोना के कारण पूरी दुनिया 2020 को याद रखेगी. मुझे लगता है कि कांग्रेस भी बीच-बीच को कभी भूल नहीं पाएगी. क्योंकि प्रदेश में 15 साल बाद लौटी कांग्रेस की सरकार बीच-बीच में चली गई. दोबारा चुनाव के दौरान वापसी की उम्मीद थी,वह भी असफल हुई. इस तरह मुझे लगता है कि एक बुरे सपने की तरह कांग्रेस 2020 को याद रखेगी. कांग्रेस के सभी लोग भगवान को मना रहे होंगे कि 2021 अच्छा आए,शुभ आए,2020 की तरह ना आए.
देश में एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर सकती है कांग्रेस
देवदत्त दुबे असफलता से जो सीख लेते हैं,तो वह सफलता की सीढ़ियां भी चढ़ते हैं. मुझे लगता है कि कांग्रेस इसी ध्रुवीकरण और दुविधा से निकलने की कोशिश कर रही है. अभी राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर जो धुंध छाई थी. पिछले दिनों उसमें असंतुष्ट 23 नेता राहुल गांधी के नाम पर सहमत हुए हैं. कांग्रेस को एकजुट रखने के लिए राहुल गांधी जरूरी है, उस दिशा में कांग्रेस आगे बढ़ रही है. इसका असर अन्य राज्यों पर भी पड़ेगा,जो गलतियां पिछले दिनों राष्ट्रीय नेतृत्व में संवाद हीनता के कारण बनी है. यदि उनको सुधारते हैं, तो मुझे लगता है कि आज कांग्रेस को पूरे देश में वोट बैंक है,एक विचारधारा है. जब लोग एक दल से नाराज होते हैं और विकल्प तलाशते हैं, तो पूरे देश में कांग्रेस एक विकल्प के रूप में हैं.