भोपाल। कारगिल युद्ध को दो दशक पूरे हो चुके हैं. इस युद्ध में भारत ने अपने 527 जवानों को खो दिया था, जबकि 1363 जवान घायल हुए थे. भारतीय जवानों ने इस युद्ध में अपने खून का आखिरी कतरा देश की रक्षा के लिए न्यौछावर कर दिया था. इन जांबाजों की कहानियां आज भी रोंगटे खड़े कर देती हैं. ऐसी ही कहानी भोपाल के नजदीक नरेगा गांव के ओमकरण वर्मा की है, जिन्होंने अपने अदम्य साहस के बल पर पाकिस्तानी घुसपैठियों के छक्के छुड़ा दिए.
अपने पीछे तैयार कर गए फौज
शहीद ओमकरण वर्मा नरेला गांव के पहले व्यक्ति थे जो फौज में भर्ती हुए थे, उनके अंदर देश भक्ति का जूनन ऐसा था कि उन्होंने बहुत छोटी सी उम्र में अपने आपको फौज के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था और 25 साल की उम्र में वो कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लड़ने पहुंच गए थे. ओमकरण वर्मा आज भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके जज्बे की आग आज भी गांव के युवाओं के अंदर जल रही है, यही कारण है कि उनके द्वारा बनाई गई फौज के लड़के आज भी सेना में जाने की तैयारी कर रहे हैं.
भाई के नक्शेकदम पर छोटे ने भी ज्वाइन की आर्मी
शहीद भाई ओमकरण के नक्शे कदम पर चलकर छोटे भाई श्याम करण भी सेना में भर्ती हो गए, जिस वक्त ओमकरण कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लौहा ले रहे थे उस वक्त श्याम करण भटिंडा में थे. श्याम करण बताते हैं कि उस समय हम फोन का इस्तेमाल नहीं किया करते थे इसलिए भैया से बात भी नहीं हो पाती थी लेकिन एक डर और घबराहट मन में हमेशा बना रहता था. लेकिन पिता जी हमारे अंदर हमेशा हौसला बढ़ाते थे.