भोपाल। कोरोना महामारी के कारण दुनियाभर के देश अभी भी इस जानलेवा बीमारी से लड़ रहे हैं. महामारी के डर से लगाए गए लॉकडाउन के कारण विकास कार्यों की गति को भी काफी नुकसान पहुंचा है. भारत में भी लंबे समय तक लॉक डाउन के कारण अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. इस दौरान कई लोगों को अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा है. इसके अलावा कोविड-19 के कारण मध्यप्रदेश में अब तक हजारों लोगों की मौतें हो चुकी हैं और यह सिलसिला थमा नहीं है.
सूबे में सत्ता का परिवर्तन और फिर उसके तुरंत बाद लॉकडाउन का आ जाना. इससे प्रदेश को काफी नुकसान पहुंचा. मध्य प्रदेश स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के मामले में पहले से ही पिछड़ा हुआ था और जब कोविड-19 ने प्रदेश में दस्तक दिया, तब यहां इससे बचने के लिए मूलभूत सुविधाओं की भी कमी हो गई. प्रदेश में कोरोना वायरस से बचने के लिए जरूरी मास्क, सैनिटाइजर, पीपीई किट की भी भारी कमी थी, जिसके कारण शुरुआत में जब मामले बढ़े तो प्रदेश का स्वास्थ्य महकमा इसे संभालने में थोड़ा पिछड़ रहा था. लेकिन फिर धीरे-धीरे व्यवस्थाओं को बढ़ाने की ओर काम किया गया और आज प्रदेश में कोविड-19 को लेकर कई सारी व्यवस्थाएं हो गई हैं.
मामले बढ़ने के बाद राज्य सरकार
मध्य प्रदेश में मार्च महीने में कोविड-19 का पहला मामला जबलपुर में दर्ज किया गया था. इसके बाद राजधानी भोपाल और इंदौर में मामले आना शुरू हुए. चूंकि पहले सरकार का ज्यादा ध्यान व्यवस्थाओं को बढ़ाने की ओर नहीं था, जो भी व्यवस्थाएं थी वह नाम मात्र की ही थी. शुरुआत में प्रदेश के केवल बड़े शासकीय अस्पतालों में ही टेस्टिंग की व्यवस्था थी और हर दिन केवल 1200 से 1400 सैम्पल ही जांचे जा सकते थे. इसके अलावा बेड, आईसीयू, वेंटीलेटर, कोविड-19 केयर सेंटर, डेडिकेटेड सेंटर और क्वॉरेंटाइन सेंटर की संख्या भी बस नाम मात्र की ही थी. मार्च से लेकर मई महीने तक लगभग व्यवस्थाओं के यही हाल रहे पर फिर जब प्रदेश के हर जिले से कोविड-19 के मामले आना शुरू हुए तब जाकर टेस्टिंग क्षमता, कोविड-19 सेंटर्स, क्वारेन्टीन सेंटर्स, दवाइयों की उपलब्धता, पैरामेडिकल स्टाफ बढ़ाया गया.
बढ़ाएं गए कोविड सेंटर्स
शुरुआत में जहां केवल प्रदेश के बड़े जिलों में ही कोविड-19 के डेडिकेटेड केयर सेंटर बनाए गए थे. वहीं आज प्रदेश के हर जिला अस्पताल में कोविड-19 सेंटर हैं. ना केवल शासकीय अस्पतालों बल्कि हर जिले में कुछ निजी अस्पतालों को भी कोविड-19 का इलाज करने की अनुमति दी गई है.
बढ़ी टेस्टिंग क्षमता
पहले प्रदेश के बड़े शहर भोपाल, ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर के शासकीय स्वास्थ्य संस्थानों में कोविड सैंपल टेस्टिंग की व्यवस्था थी. प्रदेश के हर छोटे-बड़े शहरों से सैंपल इन्हीं लैब्स में भेजे जाते थे. जब कुछ क्षेत्रों में सैंपल बढ़ गए तो यहां से सैंपल दिल्ली भी भेजे गए थे लेकिन अब प्रदेश के हर जिला अस्पताल में ट्रू नेट मशीन से सैंपल टेस्टिंग की जा रही है, साथ ही रैपिड एंटीजन टेस्ट किट भी हर क्षेत्र में उपलब्ध कराई गई है. जिसके जरिए सैंपल की जांच का परिणाम 25 से 30 मिनट में आ जाता है. इसके साथ ही शासकीय और निजी लैब में कोविड-19 की जांच की जा रही है. प्रदेश की टेस्टिंग क्षमता अब करीब 50 हज़ार से 55 हजार प्रतिदिन करने की है.
व्यवस्थाओं को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभु राम चौधरी भी कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि हमने सत्ता में आते ही कोरोनावायरस से लड़ने के लिए व्यवस्था को दुरुस्त किया है. जहां पहले हमारे पास केवल कुछ चुनिंदा लैब में टेस्टिंग की सुविधा थी लेकि आज अब हर जिला अस्पताल और निजी लैब में भी टेस्टिंग की व्यवस्था हमने की है. न केवल बड़े शासकीय अस्पतालों बल्कि सर्दी-जुखाम, बुखार और कोविड-19 की जांच के लिए फीवर क्लीनिक खोली गई है. ऑक्सीजन सुविधा को हमने सुनिश्चित किया है, साथ ही बिस्तरों को भी बढ़ाया है. किल कोरोना अभियान चलाकर सर्वे और सैंपलिंग का काम भी किया है.
राजधानी में भी बढ़ायी गयी व्यवस्थाएं