भोपाल। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा हाल ही में सौंपी गई रिपोर्ट से बालिका संरक्षण करें कि व्यवस्थाओं पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं. आयोग ने ताजा रिपोर्ट सरकार को भोपाल के बहुचर्चित प्यारे मियां यौन शोषण कांड और एक पीड़ित बच्ची की मौत की जांच के बाद सौंपी है. उधर मध्यप्रदेश बाल संरक्षण आयोग ने संप्रेक्षण गृह को लेकर नए सिरे से Standard operating procedure ( SOP) जारी की है.
सवालों के घेरे में संरक्षण गृह की व्यवस्थाएं
भोपाल के नेहरू नगर स्थित बालिका गृह में यौन पीड़ित एक बच्ची की मौत के बाद से विवादों में है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में पुलिस की भूमिका के साथ बालिका गृह की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े किए हैं. यह स्थिति तब है जब कुछ माह पूर्व ही व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के निर्देश दिए गए थे. प्रदेश बाल आयोग के सदस्य बृजेश चौहान के सामने पिछले साल 21 नवंबर को बालिका गृह का निरीक्षण के दौरान छोटी बच्चियों के साथ बड़े बच्चों द्वारा मारपीट किए जाने का मामला सामने आया था. साथ ही पढ़ाई व दूसरी गतिविधियों का संचालन भी बंद पाया गया था. बाद में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के निरीक्षण के दौरान भी यही स्थिति सामने आई. हालांकि अब प्रदेश बाल आयोग ने सभी बालिका गृह और संप्रेक्षण गृह के लिए एसओपी जारी की है.
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व्यवस्थाएं बेहतर बनाने यह दिए निर्देश
- संस्था प्रभारी अधिकारी संस्थान में ही निवास करें, इसके लिए शासन उन्हें आवास उपलब्ध कराए.
- बालक-बालिका के लिए प्रशिक्षित काउंसलर की नियमित सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं.
- बालक-बालिका के लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के परामर्श से एक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल योजना विकसित की जाए.
- सभी संस्थाओं में एक चिकित्सा अधिकारी नियमित चिकित्सा जांच और इलाज के लिए उपलब्ध कराए जाएं.
- बालकों को संस्था के अंदर और बाहर उनकी आयु, अभिरुचि और योग्यता के अनुसार व्यवसाय प्रशिक्षण दिया जाए.
- संस्थानों में बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए मनोरंजन और खेल खेल कूद की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए.
व्यवस्थाएं सुधारने निर्देश
प्रदेश में संचालित हैं 18 संप्रेक्षण गृह
कानून का उल्लंघन करने वाले 18 साल तक की आयु से कम किशोरों को जमानत ना होने और किशोर न्याय बोर्ड में प्रकरण के विचाराधीन होने तक बाल संप्रेक्षण गृह में रखा जाता है. प्रदेश में ऐसे 18 संप्रेक्षण गृह हैं. मौजूदा समय में इनमें 296 बच्चे हैं. ऐसे बच्चों की काउंसलिंग करने वाली डॉक्टर अर्चना सहाय के मुताबिक संप्रेक्षण गृह में आने वाले बच्चे अधिकतम 4 माह तक ही रखे जाते हैं. इसके बाद उन्हें जमानत मिल जाती है. इन माह के दौरान ऐसे बच्चों का खास ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है. इसलिए इन बच्चों की काउंसलिंग बेहद जरूरी होती है. ताकि वे सही गलत को समझे और फिर जीवन में गलती को ना दोहराएं.
इसके लिए संप्रेक्षण गृह में इन बच्चों के लिए पूरे दिन के शेड्यूल बनाए जाते हैं. इनमें उनकी काउंसलिंग, पढ़ाई और अन्य गतिविधियां शामिल होती है. डॉक्टर सहाय के मुताबिक आमतौर पर बाल संप्रेक्षण गृह में आने वाले मुश्किल से 1 फ़ीसदी बच्चे ही गलती को दोहराते हैं, हालांकि किशोर न्याय बोर्ड के आदेश अनुसार दोष सिद्ध होने पर सुधार के लिए किशोरों को संरक्षण भरण पोषण उपचार प्रशिक्षण और प्रवास की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है. प्रदेश में तीन विशेष गृह संचालित हैं इनमें करीब 41 बच्चे हैं.