भोपाल।पितृ पक्ष के दौरान दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. माना जाता है कि यदि पितर नाराज हो जाएं तो व्यक्ति का जीवन भी परेशानियों और तरह-तरह की समस्याओं में पड़ जाता है और खुशहाल जीवन खत्म हो जाता है. साथ ही घर में भी अशांती फैलती है और व्यापार और गृहस्थी में भी हानी होती है.
देशभर में आज से पितृपक्ष शुरू हो गए हैं, इसका समापन 17 सितंबर को सर्व पितृमोक्ष अमावस्या पर होगा. 19 साल बाद ऐसा संयोग बना है कि दो आश्विन अधिक मास होने से श्राद्ध के 1 महीने बाद शारदीय नवरात्र शुरू होंगे. जबकि हर साल श्राद्ध पक्ष खत्म होने के अगले दिन से ही नवरात्र शुरू हो जाया करते थे , लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो पाएगा. कोरोना संक्रमण के कारण इस साल तालाबों में श्राद्ध पक्ष की विधियां संपन्न नहीं की जा सकेंगी, प्रशासन ने अभी तक तालाबों या जलाशयों में तर्पण करने की अनुमति नहीं दी है जिसके कारण लोगों को घर पर रहकर ही तर्पण करना होगा.
पितृपक्ष इस बार 16 के बजाय 17 दिन के रहेंगे. जिसका कारण पूर्णिमा तिथि का 1 सितंबर को अनंत चतुर्दशी की दोपहर से प्रारंभ होना है. जो लोग अपने पूर्वजों के निमित्त पूर्णिमा से पित्र मोक्ष अमावस्या तक नियमित रूप से तर्पण और श्राद्ध कर्मकांड करेंगे, उनके लिए पितृपक्ष 17 दिन के रहेंगे. वहीं जो लोग अगले दिन प्रदीप अदा से तर्पण शुरू करेंगे उनके लिए यह पक्ष 16 दिन का ही रहेगा.
श्राद्ध पक्ष के दौरान श्रद्धालु अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनके निमित्त तर्पण ,श्राद्ध एवं पिंडदान कर अपनी श्रद्धा, आस्था और कृतज्ञता प्रकट करेंगे. बता दें बहुत से लोग श्राद्ध पक्ष के दौरान धार्मिक स्थलों जैसे उज्जैन ,बनारस ,इलाहाबाद, हरिद्वार, त्रंबकेश्वर और गया जी आदि स्थानों पर जाकर पिंडदान एवं कर्मकांड करते हैं ताकि उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिले.
हालांकि कोरोना संक्रमण के कारण इस साल कुछ स्थानों पर जाने के लिए लोगों को ट्रेन की सुविधा नहीं मिल पाएगी. लेकिन श्रद्धालु सोशल डिस्टेंसिंग और सीमित लोगों के साथ भागवत कथा का आयोजन कर सकते हैं.