भोपाल। मध्यप्रदेश में किसान सोयाबीन के बीज की कमी से जूझ रहे हैं. बीजों के लगातार बढ़ते दामों और किल्लत से किसान परेशान है. और इसी परेशानी से निकालने की तरकीब प्रदेश की सरकार किसानों को बता रही है. तो तरकीब ये है कि किसान सोयाबीन की जगह अन्य फसलों को उगाने में रुचि ले और इस 'घाटे के सौदे' से तौबा कर ले. यहां ये बताना जरूरी है कि सोयाबीन को मध्यप्रदेश का 'पीला सोना' कहा जाता है और MP को देश के सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक प्रदेश के तौर पर जाना जाता है.
दूसरी ओर किसान भी हैरान और परेशान है. उसका कहना है कि प्रदेश में सहकारी समितियों और बीज केंद्रों पर प्रमाणित बीज नहीं मिलने के चलते समय पर सोयाबीन की बुवाई नहीं हो पा रही है. पिछले 5 सालों से लगातार सोयाबीन में हो रहे नुकसान से वो त्रस्त हो गया है. उसका मानना है कि मध्य प्रदेश सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. बाजार में मांग और उपलब्धता के बीच का अंतर बड़ा है और इसक चलते ही प्रमाणित और विश्वसनीय बीज की कीमत बढ़ती जा रही है.
आसमान छू रही सोयाबीन के बीज की कीमत, दर-दर भटकने को मजबूर किसान
5 साल से खराब हो रही फसल
पिछले साल 5,858 मिलियन हेक्टर भूमि में सोयाबीन की बुवाई की गई थी लेकिन पिछले 5 साल से खराब आ रही फसल के चलते अब नए प्रमाणित बीज की आवश्यकता है जो बाजार में उपलब्ध नहीं है. इन दिनों इस मुद्दे को लेकर सियासत भी गरम है. किसान भी कई बार गुहार लगा चुका है और वो खुद तंग आकर अपने 'पीले सोने' से तौबा करने को तत्पर दिख रहा है. मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री भी मान रहे हैं, कि गुणवत्ता के मानकों पर खरा उतरने वाले बीज उपलब्ध नहीं हैं.
सोयाबीन बीज पर मंत्री जी की दलील 'बढ़ानी है आय, तो न करें घाटे का सौदा'
प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल बेबस हैं. कहते हैं किसानों को अन्य विकल्पों पर भी गौर करना चाहिए साथ ही बीज की अनुपलब्धता की वजह कुछ यूं बयां करते हैं. कहते हैं- बीज निगम के पास सोयाबीन के बीज उपलब्ध नहीं हैं, जिससे कि वह किसानों को बांट सकें. वहीं सहकारी समिति पर बीज के लिए सोयाबीन रखा था. वह गुणवत्ता के मानकों पर खरा नहीं उतर रहा है. मध्यप्रदेश में 14 लाख बीज की जरूरत है, लेकिन 12 लाख बीज ही उपलब्ध हैं. ऐसे में नए बीज की आवश्यकता है. जिसकी आपूर्ति के लिए NSC (नेशनल सीड कॉरपोरेशन) काम कर रही है.
कृषि मंत्री आगे कहते हैं- पिछले साल एक हेक्टेयर में 6 क्विंटल का औसत सोयाबीन निकला था. जिसकी बाजार में कीमत 10 से 12 हजार है और औसतन लागत 14 हजार रुपए आ रही है. ऐसे में किसानों की आय नहीं बढ़ पा रही है, जिसको बढ़ाने के लिए सोयाबीन की जगह दूसरी खरीफ फसलों को उगाने की सलाह दी जा रही है. इसके लिए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से चर्चा कर कृषि विज्ञान केंद्रों पर तैयार आधुनिक सोयाबीन के बीज राष्ट्रीय बीज निगम के माध्यम से मंगाए जा रहे हैं.
बाजार में 12 हजार तक बिक रहा सोयाबीन
गौरतलब है कि, हर साल गांव में सस्ते दामों पर बीज निगम और सहकारी समितियां सोयाबीन उपलब्ध कराती हैं. इन्हें किसान अपने खेतों में उगाते हैं लेकिन पिछले 5 सालों से खराब होती सोयाबीन की फसल के चलते वह गुणवत्ता के मानकों पर खरे नहीं उतर पा रहें हैं. इससे सोयाबीन की कमी और अधिक हो गई है. कृषि विभाग को अलग-अलग संभागों से डिमांड आ रही है जिसकी अभी तक पूर्ति नहीं हो पाई है. किसानों के लिए व्यापारी भी ग्रेडिंग करा कर खुले बाजार में सोयाबीन 11 से 12 हजार प्रति क्विंटल के भाव में बेच रहे हैं जो सोयाबीन सामान्य 4 से 5,000 क्विंटल में बिकता था, वह अब दुगने दाम पर किसान खरीदने को मजबूर हो रहे हैं.