भोपाल। मंदिरों में प्रवेश के लिए श्रद्धा भक्ति और आस्था की शर्त होनी चाहिए या ड्रेस कोड जरुरी है. क्या वजह है कि पुरुषों के लिए देश के सभी मंदिरों के दरवाज़े खुले हैं. जबकि महिलाओं के लिए कई मंदिरों में पाबंदी है तो कहीं ड्रेस कोड. उत्तराखंड के तीन मंदिरों में टाइट कपड़े स्कर्ट और शॉर्ट्स पहनकर मंदिरों में प्रवेश पर रोक के बाद देश के दो अखाड़ों के मतभेद खुलकर सामने आ गये हैं. महानिर्वाणी अखाड़े ने उत्तराखंड के हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून में तीन मंदिरों में महिलाओं के शॉर्ट्स और टाइट कपड़ों में प्रवेश वर्जित कर दिया है. कहा गया है कि महिलाओं का 80 फीसदी शरीर ढका हो तभी उन्हें मंदिर में प्रवेश मिलेगा. जबकि इस फैसले के विरोध में खड़े हुए उदासीन अखाड़े ने इसे सनातन धर्म के खिलाफ बताया है. उदासीन अखाड़े का सवाल क्या अब कपड़ों से तय होगी आस्था. उदासीन अखाड़े के महाराज अनिलानंद के मुताबिक देश के मंदिरों में अब घंटिया भी मशीनों से बज रही हैं. ऐसे निर्णयों से तो मंदिरों में भक्तों का और टोटा हो जाएगा.
उत्तराखंड मंदिरों में ड्रेस कोड..एमपी में सवाल: उत्तराखंड में हरिद्वार का दक्ष प्रजापति मंदिर, देहरादून का टपकेश्वर मंदिर और ऋषिकेश के नीलकंठ महादेव मंदिर में कपड़े देखने के बाद भक्तों को मंदिर में एंट्री मिलेगी. महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रवीन्द्र पुरी के मुताबिक इन तीन मंदिरों में छोटे कपड़े पहने हुए किसी भी भक्त के प्रवेश पर पाबंदी रहेगी. फैसला फिलहाल उत्तराखंड के मंदिरों के लिए है, लेकिन तैयारी ये है कि इस महानिर्वाणी अखाड़े से जुड़े हर मंदिर में ये फैसला लागू होगा. उत्तराखंड में मंदिरों में लगाए गए इस बैन पर विरोध एमपी से भी उठा है. एमपी में उदासीन अखाड़े के मंहत अनिलानंद महाराज ने कहा है कि ये भारत धार्मिक भावना को आहत करने वाला फैसला है. कोई छोटे कपड़े पहन रहा बड़े कपड़े पहन रहा है, इससे क्या फर्क पड़ता है. मंदिर में हर भक्त श्रद्धा भक्ति और आस्था लिए आता है. मतलब तो उसी का है ना. ये धीरे-धीरे सनातन धर्म को खत्म करने की कोशिश है. पहले ही जात पात के आधार पर समाज को बांटा हुआ है. कई जाति वर्ग ऐसे हैं, जिन्हें मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया जाता है. फिर कह दिया जाता है कि वे दूसरे धर्म में चले गए. अनिलानंद महाराज कहते हैं कि हालत ये है कि देश के कई मंदिरों में अब घंटियां भी मशीनें बजा रही हैं. ऐसे में इन शर्तों के बाद भक्त कहां से मंदिरों में पहुंचेंगे. मस्जिदें पांचों वक्त की नमाज में भरी रहती है. मंदिर में लोग आ नहीं रहे वैसे ही उस पर ऐसी शर्तें लगाई जा रही है.