भोपाल।भोपाल. कभी सोचा है आपने कि क्यों शनिवार के दिन (Saturday Tip) सूर्य पुत्र शनिदेव पर तेल चढ़ाया (Why oil is offered to Shanidev) जाता है. शायद हम सभी अपने बड़ों को देखकर इसे परम्परानुसार चलाते आए हैं लेकिन ऐसा नहीं है. हमारे धर्म ग्रंथों में, पुराणों में हर एक प्रथा के पीछे एक कारण छुपा होता है. तेल चढ़ाने को लेकर भी दो बहुप्रचलित कथाएं है. आइए आज आपको ऐसी दो कथा बताते हैं.
शनिदेव की नाराजगी के ये हैं संकेत, आसान उपायों से बनेंगे बिगड़े काम!
पहली कथा (katha on shanidev )
रामायण काल की बात है, कि रावण ने अपने पराक्रम के बल से सभी ग्रहों को बंदी बना लिया था. शनिदेव को भी अहंकारी रावण ने अपने बाहुबल के नशे में चूर होकर बंदीग्रह में उल्टा लटका दिया. जब हनुमानजी माता सीता की खोज में अपने स्वामी प्रभु श्री राम के दूत बनकर लंका गए हुए थे. रावण ने जब हनुमाजी की पूंछ में आग लगाई तब हनुमानजी ने पूरी लंका में आग लगा दी. विभीषण का महल छोड़कर पूरी लंका के जलने से सारे ग्रह आजाद हो गए परंतु शनिदेव उल्टे ही लटके हुए थे जिस कारण शनि देव आजाद नहीं हो पाए और उल्टा लटके होने के कारण उनके शरीर में बहुत भयंकर दर्द हो रहा था और वह दर्द की पीड़ा से परेशान हो रहे थे. शनिदेव की इस पीड़ा को कम करने के लिए मारुती नंदन ने उनके शरीर पर तेल से मालिश की,जिससे शनि पीड़ा मुक्त हुए. तब शनिदेव ने कहा कि जो भक्त श्रद्धा से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उसे जीवन के सारे दुखों से मुक्ति मिल जाएगी. मान्यता है कि शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा तब से ही प्रारंभ हुई
दूसरी कथा (katha on shanidev )
शास्त्रों के अनुसार एक समय सूर्यपुत्र शनिदेव को अपने बल और पराक्रम पर बड़ा अहंकार हो गया था और वे खुद को सबसे अधिक बलशाली समझने लगे. इसी घमंड में शनि देव ने हनुमानजी से युद्ध करने की सोची. शनि देव हनुमान जी को पराजित कर ये साबित करना चाहते थे कि उनसे अधिक शक्तिशाली तीनों लोकों में कोई नहीं है. जब शनि देव, श्री रामदूत हनुमान जी के पास गए तो हनुमान जी एक शांत स्थान पर बैठकर अपने प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन थे. शनिदेव हनुमान जी से मिलते ही उनको युद्ध करने के लिए ललकारने लगे. रामजी के परम भक्त हनुमानजी ने शनिदेव को बहुत समझाया और युद्ध के लिए तैयार नहीं हुए. लेकिन शनिदेव तो अहंकार के मद में चूर थे उन्होंने हनुमान जी की एक न सुनी और युद्ध करने की ठान ली. बजरंगबली के कई बार मना करने पर भी शनिदेव नहीं माने तो पवन पुत्र हनुमान जी और शनिदेव के बीच घमासान युद्ध शुरू हो गया. लड़ते-लड़ते शनिदेव बुरी तरह हारकर घायल हो गए और उनके शरीर में भयंकर पीड़ा होने लगी. तब हनुमान जी उनकी पीड़ा को तेल लगाकर कम किया. तब से ही शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है. शनिदेव ने हनुमानजी को वचन दिया कि में आपके भक्तों को कभी तंग नहीं करूंगा व जो भी व्यक्ति मुझे सच्चे मन से तेल चढ़ाएगा, मैं उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करूंगा.
शनि चालीसा (Shani Chalisa in Hindi)
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥