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नई शिक्षा नीति को लेकर शिक्षाविद् ने बताए फायदे और नुकसान, लागू करने में आएंगी समस्याएं

नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूल कॉलेजों की पढ़ाई में कई महत्वपूर्ण बदलाव होंगे. इस नई शिक्षा नीति को लेकर स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों में उत्सुकता है कि कैसा होगा नया सिलेबस, क्या कुछ नए नवाचार, अब स्कूल और कॉलेज में किए जाएंगे. जिसको लेकर छात्रों में कन्फ्यूजन बना हुआ है.

Retired Professor HS Yadav
रिटायर्ड प्रोफेसर एचएस यादव

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Published : Aug 1, 2020, 6:49 PM IST

भोपाल। देश में 34 साल बाद शिक्षा का स्तर बदलेगा. नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूल कॉलेजों की पढ़ाई में कई महत्वपूर्ण बदलाव होंगे. इस नई शिक्षा नीति को लेकर स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों में उत्सुकता है कि कैसा होगा नया सिलेबस, क्या कुछ नए नवाचार, अब स्कूल और कॉलेज में किए जाएंगे. जिसको लेकर छात्रों में कन्फ्यूजन बना हुआ है. हालांकि जब तक राज्य सरकारें इसे लागू नहीं कर देती हैं. वहीं जब तक इस पर इंप्लीमेंटेशन शुरू नहीं होता है. तब तक यह कन्फ्यूजन बना रहेगा. इस नई शिक्षा नीति को लेकर क्या कहते हैं शिक्षाविद यह जानने के लिए हमने बात की बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर और शिक्षाविद् एचएस यादव से जिन्होंने इसकी कमियां और फायदे दोनों पर खुलकर चर्चा की.

नई शिक्षा नीति को लेकर चर्चा करते रिटायर्ड प्रोफेसर एचएस यादव

जमीनी हकीकत में नहीं उतरती नीतियां

भोपाल की बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एवं शिक्षाविद् एचएस यादव ने बताया कि मैने अपनी अब तक कि उम्र में कई नए बदलाव शिक्षा के क्षेत्र में देखे हैं. कई नीतियां आई योजनाएं बनाई गई लेकिन इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिलता है. इसकी वजह ये है कि सरकार को जमीनी हकीकत में स्कूल्स ओर कॉलेजों को समझने की जरूरत है.

3 भाषाओं का झोल

शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को एक लैंग्वेज पढ़ाना शिक्षकों के लिए इतना मुश्किल होता है तो 3 भाषाएं कैसे पढ़ाई जायगी और जब स्कूल कॉलेज में शिक्षक ही नहीं है तो इन नीतियों के सही तरीके से इम्प्लीमेंट कैसे किया जाएगा. शिक्षाविद् एचएस यादव ने बताया कि कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं है ये यह शिक्षा नीति जब तक सफलतापूर्वक लागू नहीं होती है. इसका कोई असर दिखाई नहीं देता तब तक इसकी सराहना करना ठीक नहीं होगा.

बदलाव सिर्फ कागजों तक

रिटायर्ड प्रोफेसर ने जोर देते हुए कहा कि हमारे देश में शिक्षा का स्तर क्या है. ये बेरोजगारी दर को देख कर पता लगाया जा सकता है. शिक्षाविद् ने कहा बदलाव जरूरी है लेकिन अगर ये बदलाव केवल कागज़ों में समेटकर रह जाए तो यह बस टीवी चैंनलों पर बनकर ही रह जाते है. आज स्कूल और कॉलेजो की हालत जो है इसको देख कर एक ही सवाल मन में उठता है आखिर कैसे इसे लागू किया जायेगा.

भाषा का कन्फ्यूजन

उन्होंने बताया जो 3 भाषाओं में स्कूली बच्चों को पढ़ाने की बात इस नीति में है वो कैसे लागू हो पाएगी. जो बच्चा आज सेंट्रल स्कूल में है कल को अगर उसके पिता या माता का ट्रांसफर किसी दूसरे राज्य में हो जाएगा तो वो आज कर्नाटक में यंहा की भाषा में पढ़ रहा है फिर कल बिहार जायगा तो कौनसी भाषा में पढ़ेगा, साथ ही जो शिक्षक नवोदय स्कूल में पढ़ा रहा है वो आज कर्नाटक में पढ़ा रहा है. कल हरियाणा चला जायेगा या कहीं और उनका ट्रांसफर होता है तो वो किस भाषा में पढायगें.

नीति का हुआ है संघीकरण

शिक्षाविद् के मुताबिक भाषा को लेकर क्लेरिटी देना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि ये बड़ा कन्फ्यूज़न है. इस नीति का संघिकरण किया गया है इससे कोई खास फायदा नहीं है लेकिन इसको लागू करने में बहुत समास्याएं है. जो फिलहाल इस वर्ष में लागू हो भी नहीं पाएगी ओर हो भी जायगी तो सफल नहीं होगी. क्योंकि इस शिक्षा नीति में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है.

देश में शिक्षा का स्तर निम्न

इसी तरह का पैटर्न पहले भी था हालांकि अगर सरकार इसे अपने अपने राज्यों में लागू कर पाए और इसका कोई खास असर दिखा तो हम इसकी सराहना कर पायगे फिलहाल शिक्षा का स्तर बहुत खराब है. बिल्डिंग खाली पड़ी है न टीचर है न बच्चे हैं. ऐसे में बहुत मुश्किल लगता है नई शिक्षा नीति का सफलता पूर्वक स्कूल कॉलेजो में लागू होना.

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