भोपाल। भोपाल जिला को 1 जून 1949 में आजादी मिली थी, यानी देश को आजादी मिलने के लगभग 22 महीने बाद. उस समय देश में संविधान बनाने पर काम चल रहा था. भोपाल के आजाद होते हुए ही बात उठी कि संविधान सभा में सदस्य के रूप में किसको भेजा जाएगा. ऐसे में चतुर नारायण मालवीय का नाम सामने आया था. बताया जाता है कि यह भोपाल नवाब के खास थे और इसी कारण इनका नाम आगे बढ़ाया गया था. जब इस बात की भनक तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को लगी ताे उन्होंने हस्तक्षेप किया और आखिरी समय में मालवीय के स्थान पर मास्टर लाल सिंह का नाम फाइनल किया था. ये जानकारी विलीनीकरण आंदोलन के प्रमुख नेताओं में शुमार भाई रतन कुमार के बेटे डॉ.आलोक कुमार गुप्ता ने दी.
भोपाल आजाद से पहले हुआ था संविधान सभा का गठन:भोपाल विलीनीकरण पर डॉ.आलोक कुमार गुप्ता लंबे समय से काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि जिन चतुर नारायण मालवीय को संविधान सभा में भेजा जा रहा था, वे विलीनीकरण आंदोलन के विरोधी थे. उन्होंने कहा कि भोपाल के नवाब पाक समर्थक और उन्होंने अपने खास मित्र मोहम्म्द अली जिन्ना के दबाव में चेंबर ऑफ प्रिंसेस से तो इस्तीफा दिया ही, संविधान सभा में भोपाल रियासत का कोई प्रतिनिधि तक नहीं भेजा. जबकि भोपाल को आजादी मिलने से 3 साल पहले संविधान सभा का गठन हो गया था. जब 1 जून 1949 को भोपाल रियासत भारत का अंग बनी, तब जाकर प्रतिनिधि भेजे जाने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई.
चतुर नारायण मालवीय को बोरास कांड का जिम्मेदार बताया:डॉ.आलोक ने बताया कि, जब भोपाल आजाद हो गया तो भोपाल नवाब के कृपापात्र, विलीनीकरण के प्रबल विरोधी, बोरास की शहादतों के जिम्मेदार चतुर नारायण मालवीय का नाम सामने आया था. सरदार पटेल को जब इस षड्यंत्र की जानकारी मिली तो उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव कला वेंकट राव को 14 से 27 अक्टूबर 1949 तक अनेक पत्र लिखे थे. इन पत्रों द्वारा उनको जमकर फटकारा कि जिन आंदोलनकारियों ने अपने बलबूते पर नवाब के विरुद्ध संघर्ष कर भोपाल को भारत में विलीन कराया, उनकी जगह नवाब का साथ देने वालों को कांग्रेस द्वारा दंडित करने की बजाय प्रोत्साहित क्यों किया जा रहा है? इसके बाद भाई रतन कुमार का नाम प्रस्तावित किया गया, लेकिन रतन कुमार सक्रिय राजनीति से सन्यास ले रहे थे, इसलिए उन्होंने अपने स्थान पर अपने गुरु ठाकुर लालसिंह का नाम प्रस्तावित किया.