भोपाल। सावन में शिव आराधना का बड़ा महत्व है. इस दौरान जगह-जगह कांवड़ियों की लम्बी कतारें बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए दिखतीं हैं. 6 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो रहा है. इस महीने में कांवड़ यात्रा शुरू होती है. कहने को तो ये धार्मिक आयोजन पर है, इसका सामाजिक सरोकार भी है. हर साल श्रावण मास में करोड़ों की तादाद में कांवड़िए सुदूर स्थानों से आकर गंगाजल से भरी कावड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव शहर लौटते हैं. श्रावण मास की चतुर्दशी के दिन उस गंगाजल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है. लेकिन कोरोना काल के चलते माना जा रहा है कि इस बार इस यात्रा पर रोक रहेगी.
कांवड़ यात्रा से जुड़ी मान्यताएं
कुछ लोगों का मानना है कि पहली बार श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी. अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा के बारे में बताया. उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार लाकर गंगा स्नान कराए. वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए. माना जाता है तभी से इस यात्रा की शुरुआत हुई.
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