भोपाल। मध्यप्रदेश अजब है, सबसे गजब है! पर्यटन विभाग का ये स्लोगन बिल्कुल सटीक बैठता है, ऐसी ही अजब-गजब हरकत को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहता है, यह ऐसा राज्य है, जहां राम से ज्यादा रावण के प्रति प्रेम झलकता है, कई गांवों-कस्बों और जिलों में बड़ी संख्या में लोग रावण को अपना आराध्य मानते हैं, कुछ तो अपना पूर्वज तक मानते हैं, जबकि कुछ लोग रावण का मंदिर बनाकर भगवान की तरह पूजा करते हैं, इतना ही नहीं कई गांव ऐसे हैं, जहां प्रथम पूज्य भगवान गणेश से पहले भगवान रावण की पूजा की जाती है और एक-दूसरे का अभिवादन भी जय लंकेश कहकर करते हैं. पिछले कुछ सालों में ही एमपी में रावण प्रेम का चलन तेजी से बढ़ा है और अब बढ़ता ही जा रहा है. विदिशा, छिंदवाड़ा, इंदौर, मंदसौर, जबलपुर सहित कई जिलों में दशहरे पर रावण दहन की परंपरा खत्म होती जा रही है.
रावण दहन को कोर्ट में दी गई है चुनौती
प्रदेश की आर्थिक राजधानी में कुछ भक्त ऐसे भी रावण भक्त हैं, जो सालों से रावण के पुतला दहन का विरोध करते आ रहे हैं. इसके खिलाफ जिला कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. जिस पर कोर्ट में हाल ही में सुनवाई हुई है. यह याचिका इंदौर के रावण भक्त मंडल की ओर से लगाई गई है, जिसमें दलील दी गई है कि रावण प्रकांड पंडित थे, उनके कथानक को रामायण में गलत तरीके से दर्शाया गया है. रावण दहन के कारण देश भर में हर साल दशहरे पर प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, लिहाजा इस पर रोक लगाई जाये. रावण के पक्ष में विद्वानों के मत एवं इतिहास और दस्तावेज प्रस्तुत किए जा रहे हैं. अगली सुनवाई 23 अक्टूबर को होगी.
वहीं दशहरा के दूसरे दिन छिंदवाड़ा के बिछुआ विकास खंड के जामुन टोला गांव में बड़ा जलसा होता है, जलसे में आदिवासी समाज भगवान रावण को अपना पूर्वज मानते हुए राजा रावण की पूजा करते हैं, स्थानीय लोगों का कहना है कि रावण उनके पूर्वज ही नहीं बल्कि भगवान भी थे, इसलिए भी उनकी पूजा करते हैं. दशहरे पर रावण का पुतला दहन किया जाता है, जो आदिवासी समाज का अपमान है, 4 साल पहले छोटे से कार्यक्रम से रावण पूजा की शुरुआत हुई थी, जो अब बड़ा रूप ले चुकी है.
घोर तप से यहीं पर रावण ने शिव को किया था खुश
छिंदवाड़ा के ही रावनवाड़ा गांव में त्रेता युग में रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी. उसके बाद से ही इस गांव का नाम रावनवाड़ा पड़ा. कहा जाता है कि पहले यहां घनघोर जंगल हुआ करता था, जिसके मध्य रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी, भोलेनाथ ने दर्शन देकर यहीं पर रावण को वरदान दिया था. गांव के आदिवासी रावण को आराध्य के रूप में पूजते हैं. रावनवाड़ा के राजेश धुर्वे बताते हैं कि उनके ही खेत में रावण देव का मंदिर है, उनकी कई पीढ़ियां रावण की पूजा करती आ रही हैं. स्थानीय लोग रावण को आराध्य मानते हैं, यही वजह है कि दशहरा-दिवाली के बाद यहां मेला लगता है. दूर-दूर से लोग यहां पूजा करने आते हैं, मंदिर में मुर्गों-बकरों की बलि भी दी जाती है.