भोपाल।आंधियों की जिद है जहां बिजलियां गिराने की, हमारी भी जिद है वहीं आशियां बनाने की. उसूलों पे आंच आए तो टकराना जरूरी है. गर जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है. ये उस शायर की पक्तियां हैं. जिसके जरिए ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में रहते हुए अपने तेवर दिखाते थे, लेकिन बीजेपी में पहुंचने के बाद अब वो तेवर नजर नहीं आ रहे हैं. अब सिंधिया की सियासत भी बदली हुई नजर आ रही है. जो सिंधिया कांग्रेस पार्टी में रहते कभी कभार भोपाल आते थे और उनके भोपाल आने पर पूरी कांग्रेस रेड कारपेट बिछाती थी. अब जब भाजपा में पहुंच गए हैं, तो उन्हें बार-बार भोपाल आना पड़ रहा है और संघ के कार्यालय समिधा से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आवास पर हाजिरी लगानी पड़ रही है.
सिंधिया ने किया सरकार गिराने का पाप- सज्जन सिंह वर्मा कभी मुख्यमंत्री 40 मिनट तक इंतजार कराते हैं, तो कभी संघ कार्यालय के बाहर अंदर आने की अनुमति का इंतजार करते हुए सिंधिया की तस्वीरें नजर आती हैं. सिंधिया कभी-कभार अपने तेवर दिखाने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ता है. पिछले दिनों शक्ति प्रदर्शन करते हुए 40 गाड़ियों का काफिला लेकर शिवराज सिंह के सरकारी आवास पहुंचे थे, जिसकी राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा हुई थी. सिंधिया उस दौर से गुजर रहे हैं, जहां उन्हें स्वयं के पुनर्वास के अलावा अपने उन लोगों का पुनर्वास कराना है, जो सिंधिया के भरोसे कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए थे, सिंधिया को अभी तक केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह मिली है. शिवराज सिंह उपचुनाव के बाद मंत्रिमंडल विस्तार करने के मूड में नजर नहीं आ रहे हैं. सिंधिया के समर्थक जो उपचुनाव में हार गए हैं, उनका सिंधिया पर पुनर्वास को लेकर दबाव है. गोविंद राजपूत और तुलसी सिलावट जैसे करीबी तो उपचुनाव के परिणाम के बाद ही से मंत्रिमंडल में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि सिंधिया को धैर्य रखना होगा और राजनीतिक परिपक्वता दिखानी होगी. बीजेपी बाहर से आए लोगों को पहले अपने अनुशासन के सांचे में ढालती है और समाहित होने के बाद उनको तवज्जों देती है.
परिपक्वता दिखाएं सिंधिया- राघवेंद्र सिंह जब सिंधिया को करना पड़ा 40 मिनट तक शिवराज का इंतजार
राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस में थे, तो उनके जलवे दूसरे ही थे. जब वह भोपाल आते थे तो कांग्रेस उनके लिए पलक पावडे़ बिछा देती थी. उनके समर्थक कांग्रेस कार्यालय में इतना हंगामा करते थे कि हर दौरे पर तोड़फोड़ होती थी. लेकिन जब 30 नवंबर को ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मिलने उनके शासकीय आवास पर पहुंचे, तो उन्हें 40 मिनट तक इंतजार करना पड़ा, क्योंकि 11 नवंबर को ही बीजेपी की सरकार 19 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत में पहुंच गई थी.
धीरे-धीरे भाजपा के सांचे में ढलना होगा- देवदत्त दुबे भारी भरकम काफिले के साथ सिंधिया ने किया शक्ति प्रदर्शन
30 नवंबर को शिवराज-सिंधिया की मुलाकात में सिंधिया के इंतजार की खबरें जब सुर्खियां बनीं तो 11 दिसंबर को जब सिंधिया भोपाल आए तो एयरपोर्ट से ही करीब 40 गाड़ियों का काफिला लेकर शिवराज सिंह के आवास पर पहुंचे. इस काफिले में सिंधिया के साथ बगावत करने वाले तमाम कांग्रेस और उनके समर्थक मौजूद थे. इसे ज्योतिरादित्य का शक्ति प्रदर्शन माना गया.
ग्वालियर के सावरकर मंडल की सदस्यता में 65वें नंबर पर नाम
विपक्ष ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की जब जमकर खिल्ली उड़ाई, जब उन्हें ग्वालियर के सावरकर मंडल के 80 सदस्यों की सूची में 65वें नंबर पर विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर नाम दिया गया. जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में राष्ट्रीय महासचिव के पद पर थे और सीडब्ल्यूसी के भी मेंबर थे.
भोपाल की यात्रा पर संघ कार्यालय में दस्तक
ज्योतिरादित्य सिंधिया जो कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं का सम्मान करने में हिचकिचाते थे और अपने से बड़े नेताओं का भी बिना आदर के नाम लेते थे. भोपाल दौरे पर संघ के दरवाजे पर दस्तक देते नजर आते हैं. बीजेपी में जाने के बाद सिंधिया भोपाल के संघ कार्यालय समिधा में जाकर संघ के नेताओं से कई बार मुलाकात कर चुके हैं.
कांग्रेस सरकार गिराने का पाप सिंधिया की 10 पीढ़ी भी नहीं धो पाएंगी -सज्जन वर्मा
पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक के सज्जन सिंह वर्मा कहते हैं कि मैंने पिछली बार कहा था कि हमारी सरकार गिराने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया नरेंद्र मोदी के पास पहुंचे कि सरकार गिरा दी है, अब मुझे केंद्रीय मंत्री बनाओ, उन्होंने कहा कि अमित शाह के पास जाओ, अमित शाह के पास गए तो उन्होंने कहा कि जेपी नड्डा अध्यक्ष बन गए हैं. जेपी नड्डा के पास गए तो उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश का मामला है, शिवराज सिंह चौहान देखेंगे. शिवराज सिंह के पास गए, तो शिवराज सिंह ने मना कर दिया. केंद्रीय मंत्रिमंडल में आने के लिए जाने कितने घरों की खाक छानना पड़ेगी. कांग्रेस की सरकार गिराने का पाप सिंधिया की 10 पीढ़ियां भी नहीं धो पाएंगी.
उस नक्कारखाने में तुम्हारी तूती की आवाज गूंजेगी नहीं
समर्थकों के लिए शिवराज मंत्रिमंडल में शामिल करने के दबाव बनाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के दोहरे और तिहरे मापदंड हैं. कांग्रेस में जब तक थे तो निगम मंडल में हारे हुए लोगों को मत रखो कहते थे. अब इनके दो चार पठ्ठे हार गए हैं तो कहते हैं कि इनको भी निगम मंडल में लो. बीजेपी और कांग्रेस में बड़ा फर्क है. उस नक्कारखाने में तुम्हारी तूती की आवाज गूंजेगी नहीं. कांग्रेस में तो बहुत चल जाती थी, वहां तो कई दरवाजे भटकना पड़ेंगे.
अपने अनुशासन में सिंधिया को ढाल रही है भाजपा
वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे कहते हैं कि कांग्रेस में सिंधिया की आमद याद होगी, जब सोनिया गांधी ने माधवराव सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को सदस्यता दिलाई तब दो मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय स्तर के नेता पीछे खड़े थे. राहुल गांधी भी कह चुके हैं कि सिंधिया एकमात्र ऐसे कांग्रेस नेता थे, जिनके लिए उनके घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे, वो रात में भी घर आ जा सकते थे, लेकिन भाजपा एक समुद्र है. यहां केवल नेताओं को प्रवेश कराते समय महत्व दिया जाता है, फिर पार्टी धीरे-धीरे अपने अनुशासन में ढालती है. मुझे लगता है कि यही प्रक्रिया अब बीजेपी में चल रही है कि सिंधिया को कांग्रेस से आए नेता या सरकार बनवाने वाले नेता के तौर पर ना देखा जाए. इनके लिए पार्टी के नेता और सांसद की हैसियत से देखा जा रहा है.
धीरे-धीरे बीजेपी के सांचे में ढलना होगा
देवदत्त दुबे कहते हैं कि जिस तरीके से उनकी मुलाकात हो रही है, लेकिन उनके मकसद पूरे नहीं हो रहे हैं. उससे भी एक संदेश जा रहा है कि क्या सिंधिया का अब भाजपा में वैसा महत्व नहीं रहा. कांग्रेस में उनका एक तरफा जलवा था, वह भी कांग्रेस में ऐसी ही स्थिति बनने पर भाजपा में आए थे. भाजपा में जब यह स्थिति बनेगी, तो कहां जाएंगे. उनके लिए विकल्प भी कम बचे हैं. मुझे लगता है कि वह धीरे-धीरे भाजपा के सांचे में ढलेंगे. भाजपा तो पूरी कोशिश करती है कि किसी भी नेता को अपने अनुशासन के सांचे में ढाला जाए.
सिंधिया को भाजपा में स्थापित होने की छटपटाहट
पत्रकार राघवेंद्र सिंह कहते हैं कि सिंधिया अपने आप को भाजपा में स्थापित करना चाहते हैं. यह शुरुआती दौर है, इसमें कमजोर पड़ गए और पिछड़ गए है, तो फिर बीजेपी के अंदर उनकी छवि बन पाएगी, जो अभी बनी हुई है. वह चाहते हैं कि ज्यादा आक्रामक हों और उनकी स्वीकार्यता बढ़ जाए. दूसरा सिंधिया जितने विधायकों को अपने साथ लेकर आए थे, उनकी पुनर्वास की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर है. इसलिए वह चाहते हैं कि भाजपा के अंदर उनकी टीम स्थापित हो जाए. उसके बाद जैसा काम होगा, वैसा लोगों को वजन मिलेगा.
राजनीतिक अनुभव हीनता की बजाय परिपक्वता दिखाएं सिंधिया
राघवेंद्र सिंह कहते हैं कि भाजपा के अंदर कार्यशैली सब्र वाली है. उनको धैर्य रखना पड़ेगा, अगर धैर्य नहीं रखेंगे, तो धीरे-धीरे उनकी छवि खंडित होगी. लोग कहेंगे कि सिंधिया में बचपना ज्यादा है. एक महीने में 3 बार मिलना. मंत्रिमंडल के विस्तार की बात करना. अपने साथ बड़ा काफिला लेकर चलना, ये कम से कम राजनीतिक परिपक्वता की ओर इशारा नहीं करता. भाजपा के भीतर घाघ किस्म के नेता हैं. नेताओं को थकाना जानते हैं, सिंधिया जब बार-बार ऐसा करेंगे, तो उनकी छवि बिगड़ेगी. उनके समर्थकों को थकान आएगी, जो कम से कम बीजेपी में सिंधिया के समर्थकों में निराशा पैदा करेगी. मुझे लगता है कि उन्हें राजनीतिक अनुभवहीनता की बजाए परिपक्वता का परिचय देना चाहिए.