भोपाल।अभिभावकों की बच्चों से अधिक अपेक्षाएं उन्हें डिप्रेशन में डाल रही हैं, परीक्षा परिणामों के बाद हमेशा ही आत्महत्या के मामले बढ़े हैं. मनोचिकित्सकों के अनुसार ऐसे मामलों में अभिभावक अपने बच्चों की तुलना अधिक क्षमता वाले बच्चों से कर रहे हैं, जिससे वे तनाव में आकर आत्महत्या के लिए प्रेरित हो रहे हैं. ऐसे बच्चों को परिवार, स्कूल और सामाजिक स्तर पर समर्थन नहीं मिलता है. आत्महत्या का शब्द जेहन में आते ही रूह कांप जाती है. आखिरकार कोई आत्महत्या किन परिस्थितियों में करता है, यह जानने और परीक्षा परिणामों के बाद आत्महत्या रोकने के उपायों पर ईटीवी भारत ने मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने खास बातचीत की.
स्ट्रेस होता है सबसे बड़ा कारण
मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने बताया की परीक्षा इम्तिहान जो हर इंसान हर छात्र के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. विशेषकर बोर्ड एग्जाम जैसे 10वीं और 12वीं इन एग्जाम का अपना एक महत्व होता है. इनमें सफल असफल होना छात्र की साल भर की मेहनत पर निर्भर होता है और जब रिजल्ट मनमाफिक और अच्छा नहीं आता तो कई छात्र आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. लेकिन हर फेल होने वाला बच्चा आत्महत्या नहीं करता इसका मतलब जो छात्र स्ट्रेस को नहीं झेल पाते चुनौतियों को हैंडल नहीं कर पाते उनमें पहले से ही मानसिक परेशानियों के लक्षण देखने को मिलते हैं, वो ऐसे कदम उठाते हैं.