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प्रो. रविन्द्र कोरिसेट्टार और डॉ. नारायण व्यास को आज मिलेगा डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर सम्मान - डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर सम्मान

संस्कृति, पर्यटन और धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व मंत्री उषा ठाकुर आज शाम 4.30 बजे डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर सम्मान से दो विभूतियों को सम्मानित करेंगी. प्रो. रविन्द्र कोरिसेट्टार और डॉ. नारायण व्यास को डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. (Dr. Vishnu Sridhar Wakankar Samman today) (Pro. Ravindra Korisettar and Dr. Narayan Vyas)

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Published : May 4, 2022, 12:26 PM IST

भोपाल। डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर सम्मान से प्रो. रविन्द्र कोरिसेट्टार को वर्ष 2010-19 के लिए और डॉ. नारायण व्यास को 2019-20 के लिए सम्मानित किया जाएगा. संस्कृति विभाग और संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा राज्य संग्रहालय सभागार में सम्मान समारोह आयोजित होगा. पुरातत्व विभाग द्वारा पुरा सम्पदा के संरक्षण एवं पुरातत्विक संस्कृति के क्षेत्र में रचनात्मक, सृजनात्मकता एवं विशिष्ट उपलब्धियां अर्जित करने वाले सक्रिय भारतीय नागरिक और संस्था को यह सम्मान दिया जाता है.

कौन हैं प्रो. रविन्‍द्र कोरिसेट्टार :प्रो. रविन्‍द्र कोरिसेट्टार का जन्‍म 8 जुलाई 1952 को होसपेट (कर्नाटक) में हुआ. उन्होंने प्रो. एच.डी. सांकलिया के सानिध्‍य में पुरातत्‍व के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्‍त किया. उन्होंने पुरातत्‍व में प्रागैतिहास को अपना विषय चुना एवं भारतीय प्रागैतिहास को विश्‍व में महत्‍वपूर्ण स्‍थान दिलाने में अहम योगदान दिया. वह विभिन्‍न वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं एवं शोध पत्रिकाओं से सक्रिय रूप से जुड़े रहे एवं इन्‍हीं में से कुछ शोध पत्रिकाओं का संपादन भी किया. सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. डी. सी. सरकार पेवेट चेयर प्रोफेसर (2013-15), डॉ. विष्‍णु श्रीधर वाकणकर सीनियर फेलो (2015-17), उच्‍च शिक्षा अनुदान आयोग के इमेरिटस फेलो (2017-19) और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सीनियर विषयक फेलो (2019-21) के रूप में अनेक शोध कार्य किए.

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डॉ. नारायण व्यास का संक्षिप्त परिचय :डॉ. नारायण व्यास का जन्‍म 05 जनवरी 1949 को उज्‍जैन में हुआ. गुरुवर पद्मश्री डॉ. विष्‍णु श्रीधर वाकणकर के पदचिह्नों पर चलते हुये उन्होंने भारतीय शैल चित्रकला को विश्‍व पटल पर विशेष स्‍थान दिलाने में अहम योगदान दिया. वर्ष 2009 में सेवानिवृत्ति उपरांत पुरातत्‍व में विशेषकर शैल चित्रकला के सरंक्षण एवं प्रबंधन के लिए भोपाल के विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्‍वविद्यालय के छात्रों एवं शोधाार्थियों के लिये सतत् प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं. 100 से अधिक शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं.

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