भोपाल। कोरोना काल में आर्थिक संकट से जूझ रहे निजी स्कूल संचालकों ने बुधवार को राज्य शिक्षा केन्द्र का घेराव किया. निजी स्कूल संचालकों की मांग है कि, अन्य गतिविधियों की तरह स्कूलों को भी खोला जाए और पढ़ाई की गतिविधि शुरू की जाएं.
निजी स्कूल संचालकों ने राज्य शिक्षा केन्द्र में दिया धरना आर्थिक तंगी से जूझ रहे निजी स्कूल
स्कूल संचालकों का कहना है कि, कोरोना काल के चलते पिछले सात माह से स्कूल बंद हैं. ऐसे में अभिभावक फीस नहीं भर रहे हैं और ना ही शासन द्वारा प्राइवेट स्कूलों की कोई मदद की जा रही है. जिससे स्कूल का स्टाफ आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. स्कूल के टीचरों को सेलरी नहीं मिल पा रही है. कई स्कूल संचालकों के पास स्टाफ को पेमेंट करने के लिए पैसे नहीं है. इस आर्थिक तंगी के चलते प्रदेश के तीन स्कूल संचालकों ने आत्महत्या तक कर ली है.
स्कूल संचालकों की मांग
संचालकों का कहना है कि, सरकार की गाइडलाइन के साथ स्कूलों को खोलने के लिए तैयार हैं. अन्य वर्गों की तरह भी उन्हें 5 से 10 लाख तक का लोन दिया जाए. आरटीई के पैसों का जल्द से जल्द भुगतान किया जाए. साथ ही कक्षा पहली से 12वीं तक के स्कूलों का नवीनीकरण बिना निरिक्षण के 5 वर्षों के लिए बढ़ाया जाए. इसके अलावा छोटे और बड़े स्कूलों का फीस के आधार पर वर्गीकरण किया जाए.
सीएम से भी लगा चुके हैं गुहार
निजी स्कूल संचालकों का कहना है कि, कई बार स्कूल शिक्षा मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक को ज्ञापन और पत्र के माध्यम से अपनी मांगे बता चुके हैं. लेकिन अभी तक उनकी समस्या का कोई निराकरण नहीं किया गया है. निजी स्कूल संचालकों ने सरकार को चेतावनी दी है कि, यदि मांगें पूरी नहीं हुईं तो उग्र आंदोलन किया जाएगा, जिसकी पूरी जवाबदारी सरकार की होगी.
संकट में निजी स्कूल
लॉकडाउन से अब तक निजी स्कूल पिछले आठ महीने से बंद पड़े हैं. बच्चों के स्कूल नहीं जाने की वजह से उनका भविष्य अंधकार मय होता जा रहा है, वहीं निजी स्कूल चला रहे संचालकों के सामने एक बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. साथ ही बच्चों की पढ़ाई के लिए लगे शिक्षक वर्ग भी इस महामारी से जूझ रहे हैं.
जीवन यापन करना हो रहा मुश्किल
निजी स्कूल के संचालक का कहना है कि, इस कोरोनाकाल में स्कूल से जुड़े लोगों का जीना मुश्किल हो गया है. बच्चों के अभिभावक फीस नहीं दे रहे हैं, स्कूल में बिजली, पानी, किराया तक निकलना मुश्किल हो रहा है, किसी तरह कुछ शिक्षकों को आधी पगार देनी पड़ रही है, कुछ शिक्षकों ने तो कहीं पान की दुकान, तो किसी ने चाट के ठेले खोल लिया है. ऐसे में इन शिक्षकों को अपने घर का गुजारा करना भारी पड़ रहा है.