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नॉन कोविड मरीजों के इलाज से बच रहे निजी अस्पताल, सरकारी अस्पताल पर बढ़ रहा बोझ - सरकारी अस्पतालों पर बढ़ा बोझ

कोरोना काल में निजी अस्पताल सामान्य बीमारियों ( नॉन कोविड) से ग्रसित मरीजों का इलाज करने में भी कतरा रहे हैं. कुछ अस्पतालों को छोड़कर ज्यादातर प्राइवेट हॉस्पिटल इन मरीजों इलाज नहीं करना चाहते हैं. लिहाजा सरकारी अस्पतालों पर दबाव बढ़ता जा रहा है.

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Published : Aug 11, 2020, 11:10 PM IST

भोपाल। कोरोना वायरस का खौफ इस कदर है कि सभी का ध्यान दूसरी बीमारियों की तरफ जा ही नहीं रहा है. शासन-प्रशासन भी संक्रमण से बचने के तमाम उपायों में जुटा है. लिहाजा सामान्य बीमारियों की तरफ उतना ध्यान नहीं दे पा रहा है. जिससे मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं प्राइवेट हॉस्पिटल मौसमी और दूसरी बीमारियों के मरीजों का इलाज करने से झिझक रहे हैं. जिससे ये समस्या और भी गंभीर होती जा रही है.

निजी अस्पतालों की बेरुखी

सरकारी अस्पतालों पर बढ़ रहा बोझ

प्राइवेट हॉस्पिटल के इस रवैये का असर ये हुआ कि सरकारी अस्पतालों में सामान्य मरीजों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. सरकारी अस्पतालों पर कोविड और सामान्य बीमारियों से ग्रसित मरीजों के इलाज की दोहरी जिम्मेदारी आ गई है. परिणामस्वरूप संसाधनों की भारी कमी होती जा रही है. इसका अंदाजा भोपाल के हमीदिया अस्पताल की हालत से लगाया जा सकता है.

अस्पतालों में बेड की कमी

मेडिसिन डिपार्टमेंट में सभी बेड करीब-करीब फुल हैं. जरूरत पड़ने पर मरीजों को कॉर्डियोलॉजी व अन्य डिपार्टमेंट में भर्ती करना पड़ रहा है. ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट जहां हादसे में घायल मरीजों को भर्ती किया जाता है. वहां भी ज्यादातर बेड फुल ही चल रहे हैं. दिन दो-चार मरीज डिस्चार्ज होते हैं, उतने नए मरीज आ जाते हैं.

सर्जरी डिपार्टमेंट में पहले से तय सर्जरी ही मुश्किल से हो पा रही है, ऐसे में अगर कोई इमरजेंसी केस आ जाए तो मुश्किल हो जाती है. ऑपरेशन में भी वेटिंग चल रही है. आईसीसीयू की हालत भी यही है. इस यूनिट में मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अतिरिक्त बेड की व्यवस्था की जा रही है. हालांकि अधीक्षक डॉ. आईडी चौरसिया ने दावा किया है कि हमीदिया अस्पताल में स्टॉफ की कमी नहीं है. कोविड और नॉन कोविड मरीजों के सेपरेट इलाज के लिए अलग-अलग स्टाफ की व्यवस्था है.

हर सरकारी अस्पताल की यही कहानी

ये सिर्फ हमीदिया अस्पताल का हाल नहीं है. लगभग सभी सरकारी अस्पतालों की यही कहानी है. प्राइवेट अस्पतालों की सिलेक्टिब अपरोच के चलते ये समस्या और भी गंभीर हो रही है. इसकी दो वजहें हैं. एक तो मंहगा इलाज और दूसरी संसाधनों की कमी. मंहगे इलाज के चलते आम आदमी खुद इन अस्पतालों का रूख नहीं करना चाहता. दूसरी तरफ ये अस्पताल मौजूदा स्थितियों को देखते हुए संसाधन बढ़ाने में सक्षम नहीं हैं. जानकार बताते हैं कि अगर ऐसे ही हाल रहे तो आने वाले दिनों में सरकारी अस्पतालों में बेड खत्म हो जाएंगे. हालांकि अभी समस्या नियंत्रण से बाहर नहीं है, लेकिन इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो हालात विकराल हो सकते हैं.

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