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लॉकडाउन में मनरेगा को लेकर सियासत, कभी PM मोदी ने बताया था कांग्रेस की असफलता का स्मारक - कांग्रेस की असफलता का स्मारक है मनरेगा

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में शुरु की गई मनरेगा योजना पर कांग्रेस-बीजेपी में आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है. कांग्रेसियों ने इसे कांग्रेस की दूरगामी नीतियों का परिणाम कहा है तो बीजेपी इसे कांग्रेस की असफलता का स्मारत बता रही है.

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लॉकडाउन में मनरेगा को लेकर सियासत

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Published : May 12, 2020, 4:52 PM IST

भोपाल।कोरोना वायरस पर काबू पाने के लिए किए गए लॉकडाउन से सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग प्रभावित हुआ है. करोड़ों की संख्या में मजदूरों ने घर वापसी की है. इन परिस्थितियों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में लागू की गई मनरेगा योजना, ग्रामीण इलाकों में रोजगार मुहैया कराने में कारगर साबित हो रही है. इसी वजह से एक बार फिर मनरेगा को लेकर सियासत शुरू हो गई है. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी मनरेगा को कांग्रेस की असफलता का स्मारक बताया था. कांग्रेस आज सवाल कर रही है कि संकट की इस घड़ी में मनरेगा ही कारगर साबित हुई है. हालांकि बीजेपी अपने आरोपों पर कायम है. फिलहाल मनरेगा को लेकर सियासत कितना भी जोर पकड़े, लेकिन संकट की इस घड़ी में ग्रामीण मजदूरों के लिए ये योजना वरदान साबित हो रही है.

लॉकडाउन में मनरेगा को लेकर सियासत

मनरेगा से दूर हुआ रोजी-रोटी का संकट

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा जारी जानकारी पर गौर करें तो कोरोना संकट के इस दौर में हर जिले में मजदूरों को काम की जरूरत थी. रेड जोन छोड़कर अन्य इलाकों में इन कार्यों के संचालन के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए थे. मजदूरों के समक्ष जो रोजी-रोटी का संकट पैदा हुआ था, वो मनरेगा कार्यों के संचालन से दूर हो सका है. मनरेगा में जल संरक्षण, कूप निर्माण, तालाब निर्माण, चेक डैम निर्माण सहित स्व-सहायता समूहों और स्वच्छ भारत मिशन के कार्य आज एक बड़े वर्ग के लिए वरदान सिद्ध हो रहे हैं. मनरेगा में इस समय 14 लाख 64 हजार 969 श्रमिक काम कर रहे हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. प्रदेश की 22 हजार से अधिक पंचायतों में करीब 1 लाख 31 हजार कार्य चल रहे हैं.

मनरेगा से देश में आर्थिक गतिविधियां संभव

मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि मनरेगा कांग्रेस की दूरगामी नीतियों का परिणाम है. जिसकी सराहना पूरा विश्व करता है. वे लोग जो इसे कांग्रेस की असफलताओं का स्मारक कहते हैं, आज इसका अनुगमन करने के लिए मजबूर हैं. आज भारत को जिस त्रासदी में धकेला गया है. जहां पर देश का मजदूर मरने के लिए मजबूर है. तब मनरेगा जैसी योजना ही है, जिसने देश को हथेली लगाई है. इसके सामने आलोचना करने वाले लोगों ने घुटने टेक दिए हैं. देश में आज आर्थिक गतिविधियों की जरूरत है. वो आर्थिक गतिविधियां ऐसी ही योजनाओं के माध्यम से की जा सकती हैं. राहुल गांधी आज बार-बार कह रहे हैं कि समाज और जनता में पैसे दीजिए, तब जाकर आर्थिक स्थिति संभलेगी. ऐसी नीतियों पर सरकार को लौटना पड़ेगा. सरकार का जो दंभ और झूठा अहंकार है, ये तभी संभलेगा.

मनरेगा गलत नीतियों का स्मारक

वहीं बीजेपी के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि ये सच है कि मनरेगा कांग्रेस की गलत नीतियों के परिणाम का स्मारक है. वो बताता है कि 70 साल मजदूर विरोधी, गरीब विरोधी और किसान विरोधी नीतियां रही हैं. जिसके कारण मनरेगा जैसी योजना मजदूरों के लिए चलाना पड़े. इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है. क्योंकि जो पलायन किए हुए मजदूर आज लौटकर गांव आ रहे हैं. वो तो 5 साल में गए मजदूर नहीं, बल्कि डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से गए मजदूर हैं. इसलिए कोई संदेह नहीं बचा है. दूसरी सच्चाई ये भी है कि कांग्रेस ने मनरेगा के अंतर्गत जितना कार्य दिवस और जितना श्रम नहीं दिया है, उससे ढाई गुना ज्यादा देने का काम मोदी सरकार प्रतिवर्ष पहले और दूसरे कार्यकाल में कर रही है. इसलिए यह 70 साल की गलत नीतियों का स्मारक था, है और दिखाई भी स्पष्ट तौर पर पड़ रहा है. आने वाले समय में जिस प्रकार की मोदी जी की नीतियां हैं, आपको दिखाई पड़ेगा के हर एक की हिस्सेदारी-भागीदारी अर्थव्यवस्था में रहेगी.

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