भोपाल। मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान पूरा होने के बाद अब दिग्गजों की बेचैनी बढ़ गई है. वोटिंग के ठीक दूसरे दिन बीजेपी-कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं से पोलिंग की फीडबैक रिपोर्ट ले रहे हैं. इसी बीच उपचुनाव में हुई बंपर वोटिंग को लेकर कांग्रेस और बीजेपी अपने- अपने मायने निकाल रहे हैं.
बंपर वोटिंग पर कांग्रेस के मायने
पूर्व मंत्री व कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने दावा किया है कि प्रदेश की 28 सीाटों पर हुए मतदान में जनता ने दिखा दिया है कि उनके साथ छल और महापाप करने वाले नेताओं को सबक सिखाना है. कोरोना काल में भी लोग घरों से निकलकर वोट करने पहुंचे, क्योंकि उन्हें उनमें गद्दारों के खिलाफ गुस्सा है. इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस की जीत सुनिश्चित है.
एक तरफा जीतेगी बीजेपीः शिवराज
वहीं बीजेपी की तरफ से सीएम शिवराज तो पहले ही दावा कर चुके हैं, कि कोरोना काल के बावजूद भी हुई बंपर वोटिंग से साफ है कि जनता ने बीजेपी को जनमत दिया है. उन्होंने जनता का आभार जताते हुए 10 नवंबर को सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा की जीत का दावा किया है.
राजनीतिक जानकारों का नजरिया
हालांकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर मतदान पिछले आंकड़ों की तुलना में ज्यादा होता तो मान सकते थे कि जनता में रोष है, इसलिए सत्ता परिवर्तन के लिए बंपर वोटिंग हुई है. लेकिन उपुचनाव में 2018 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले मतदान करीब 3 फीसदी कम हुआ है. इसलिए ये नहीं कह सकते है कि ये कांग्रेस या बीजेपी के पक्ष में है. अक्सर उपचुनाव में मतदान कम ही होता है.
क्षेत्र के मुद्दों पर निर्भर करता है वोटिंग पर्सेंटेज
शिव अनुराग पटेरिया कहते हैं कि वोटिंग पर्सेंटेज के मायने क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग हो सकते हैं. जैसे ग्वालियर चंबल-अंचल में बीजेपी की तमाम कोशिशों के बावजूद टिकाऊ-बिकाऊ का मुद्दा गूंजता रहा. जबकि दूसरे क्षेत्रों में इसका ज्यादा असर नहीं दिखाई दिया.
10 नवंबर को होगा फैसला
मध्य प्रदेश उपचुनाव में कुल 69.93 फीसदी मतदान हुआ है. मतदान के बाद बीजेपी और कांग्रेस ने अपनी-अपनी जीत का दावा किया है. 12 मंत्रियों समेत 355 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद है. इनमें किसका सितारा बुलंद होगा इसका फैसला 10 नवंबर को होगा.
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कोरोना संक्रमण के बीच हुई वोटिंग
वोटिंग से पहले माना जा रहा था कि एमपी में कोरोना वायरस के चलते मतदान कम होगा, लेकिन लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान किया. मतदान केंद्रों पर कोरोना से बचाव का ध्यान रखा गया. हालांकि 2018 के विधानसभा उपचुनाव से करीब 3 फीसदी वोटिंग कम हुई है.28 सीटों पर पिछले आम चुनाव में 72.92 फीसदी वोटिंग हुई थी.
दमोह को छोड़कर 28 सीटों पर मतदान
फिलहाल एमपी विधानसभा की 29 विधानसभा सीटें खाली हैं. दमोह सीट चुनाव तारीखों के ऐलान के बाद कांग्रेस विधायक राहुल सिंह लोधी के इस्तीफे से खाली हुई है. राहुल लोधी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, इसलिए दमोह सीट पर परिस्थितियों के हिसाब से चुनाव नहीं कराया गया. लिहाजा फिलहाल 28 सीटों पर उपचुनाव के लिए वोटिंग हुई.
क्यों बनी एमपी में उपचुनाव की स्थिति
करीब 9 महीने पहले राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत की थी. वे अपने समर्थक 22 विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे. बाद में 3 और कांग्रेस विधायक बीजेपी में शामिल हो गए, जबकि 3 विधायकों के निधन के चलते सूबे में उपचुनाव की स्थिति बनी है.
ग्वालियर चंबल में सिंधिया की साख दांव पर
ये उपचुनाव बीजेपी से राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख का चुनाव बन गया है, क्योंकि कांग्रेस से बगावत करने के बाद उन्हें अपने फैसले को सही साबित करना है, जबकि कांग्रेस ने सिंधिया की बगावत को 'बिकाऊ और गद्दार ' का मुद्दा बनाकर भुनाने की पूरी कोशिश की है. चुनाव प्रचार के दौरान 'टिकाऊ और बिकाऊ' का मुद्दा जमकर गूंजा. 28 सीटों में 16 सीटें ग्वालियर चंबल अंचल की हैं, जो सिंधिया की के प्रभाव वाली मानी जाती हैं. शायद यही वजह है कि उपचुनाव के प्रचार में सीएम शिवराज ने 84 और सिंधिया ने 41 जनसभाएं कीं, जबकि कांग्रेस की तरफ से कमलनाथ ने मोर्चा संभाला और 39 सभा कीं.
विधानसभा की वर्तमान स्थिति
मध्यप्रदेश में कुल 230 सीटें हैं. सत्ताधारी बीजेपी के पास 107 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 87 विधायक हैं. वहीं दो बसपा, एक सपा और चार निर्दलीय विधायक हैं. दमोह से कांग्रेस विधायक राहुल लोधी ने इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली. लिहाजा वर्तमान में बीजेपी को बहुमत के लिए महज 8 सीटों की जरूरत है, जबकि कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत के लिए सभी 28 सीटें जीतनी होंगी.
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