भोपाल। 46 साल पहले आज ही के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल (Emergency) की घोषणा कर सबको चौंका दिया था, इसके बाद आंदोलन कर रहे सभी विरोधी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया गया था. भले ही इस घटना के दशकों बीत चुके हैं, पर आज भी वो घटना लोकतंत्र के सीने में नश्तर की तरह चुभता रहता है. इस दिन को हर पार्टी अपने स्तर पर भुनाती भी है, जबकि कमोबेश सभी पार्टियां अपने पैरों तले लोकतंत्र को रौंद रही हैं. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर आपातकाल को लोकतंत्र के लिए काला दिन बताया है. सीएम ने लिखा- 1975 में आज के ही दिन भारतीय लोकतंत्र (Democracy) का गला घोंटकर आपातकाल (Emergency) लागू किया गया था. आम नागरिकों के अधिकार छीन लिये गये, प्रेस के मुंह पर ताला जड़ दिया गया, विरोध में मुखर होने वाली आवाजों को काल कोठरी के अंधेरों में ठूंसकर चुप कराने का हरसंभव और क्रूरतम प्रयास किया गया.
वहीं अगले ट्वीट में CM Shivraj Singh Chauhan ने लिखा- गरीबी हटाओ का नारा देने वाली कांग्रेस ने (Emergency) लागू कर गरीबों के मुंह का निवाला छीनने का घनघोर पाप किया. सच्चाई के लिए उठने वाली हर आवाज पर जुल्म ढाये गये. 'समय होत बलवान'. समय ने करवट बदली और आपातकाल लगाकर जनता की शक्ति छीनने वाले स्वयं शक्तिहीन होकर कहीं के नहीं रहे.
एक और ट्वीट में Chief Minister ने लिखा- भारत के लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व झोंकने व आपातकाल की क्रूर यातनाओं को सहते हुए अपने प्राणों को उत्सर्ग कर देने वाले महान आत्माओं के चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि! साथ ही संकल्प कि आपके सपनों के भारत के निर्माण के लिए हम सब प्राण प्रण से प्रयास करेंगे.
पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम सिद्धार्थ शंकर रे ने दी थी आपातकाल लगाने की सलाह
25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक सुरक्षा का हवाला देते हुए देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी. 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनके चुनाव को शून्य करार दिया था. बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल के उस समय के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी. आपातकाल के दौरान लोगों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे. विरोध करने वाले नेताओं को जेल में डाल दिया गया. प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई थी. बिना सूचना अधिकारी की सहमति से कोई भी खबर नहीं छापी जा सकती थी.