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Petrol-Diesel Price: 34.46 रुपये प्रति लीटर आने वाला कच्चा तेल क्यों हो जाता है महंगा, एमपी में इन टैक्सों के लगने से 110 के पार हुआ पेट्रोल - दुनिया में सबसे महंगा पेट्रोल

पेट्रोल के दामों में लगातार वृद्धि हो रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पेट्रोल के महंगे मिलने के पीछे कारण क्या है. वहीं भारत में ही पेट्रोल के दरें अधिक क्यों है. आएये जानते हैं. पेट्रोल के महंगे होने के कारण और इसके पीछे लगने वाले टैक्स की कहानी.

Petrol Diesel Price
डीजल पेट्रोल दाम

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Published : Jul 19, 2021, 6:00 AM IST

हैदराबाद। पेट्रोल-डीजल के दामों में लगातार बेतहाशा वृद्धि की जा रही है. पेट्रोल के भाव सारे रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं. मध्यप्रदेश में भी इन दिनों पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) के दाम बढ़ रहे हैं. रविवार को एमपी के भोपाल में पेट्रोल के दाम 110 रुपये से अधिक रहे. जबकि शनिवार यानी 17 जुलाई को अनूपपुर में 113.10 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल खरीदा गया.

न्यूयॉर्क से महंगा पेट्रोल
अगर अनूपपुर के पेट्रोल के दामों की तुलना न्यूयॉर्क से की जाए तो यहां दोगुने दामों पर पेट्रोल मिल रहा है. वहीं पाकिस्तान में भारत से ज्यादा सस्ता पेट्रोल मिल रहा है. पेट्रोल के दामों में उछाल कई मानकों पर निर्भर करता है. इसमें सबसे मुख्य है- पेट्रोल पर लगा टैक्स. आएये जानते हैं कि पेट्रोल पर किस तरह से टैक्स लगता है और इसके अलावा क्या कारण हैं, जिससे पेट्रोल महंगा मिलता है.

ऐसे महंगा हो रहा पेट्रोल

मध्य प्रदेश में पेट्रोल को लेकर समझते हैं. एक लीटर पेट्रोल पर प्रदेश में केंद्र सरकार 33 फीसदी उत्पाद शुल्क यानी एक्साइज ड्यूटी लगाती है. इस टैक्स के ऊपर फिर सेस लगाया जाता है. एमपी में फिलहाल पेट्रोल पर 4.50 रुपए सेस लग रहा है. यानी पेट्रोल की कीमतों में 55 फीसदी तो टैक्स ही शामिल है. पेट्रोल पर कितना टैक्स लग रहा है और आप तक पहुंचते-पहुंचते यह कितना महंगा हो जाता है.

केंद्र और राज्य सरकारों की मोटी कमाई
बीते छह साल में मोदी सरकार की पेट्रोल-डीजल से कमाई 307 फीसदी तक बढ़ी है. अगर पेट्रोल-डीजल पर एक रुपये का उत्पाद शुल्क भी बढ़ता है, तो सरकार की सालाना कमाई 14 हजार करोड़ रुपये तक बढ़ जाती है. पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि पेट्रोलियम उत्पादों पर वैट से राज्य सरकारों ने 2019-20 में 2 लाख करोड़ रुपये और अप्रैल-दिसंबर 2020-21 में 1.35 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कमाई की. वहीं, केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क से 2019-20 में 2.39 लाख करोड़ रुपये और 2020-21 में 3.89 लाख करोड़ रुपये का राजस्व कमाया.

तेल कंपनियां बार-बार बढ़ा रहीं दाम
बता दें कि तेल कंपनियां रोज पेट्रोल-डीजल की कीमतें तय करती हैं. इस साल पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद 4 मई से कीमतें बढ़ना शुरू हुईं. अब तक कीमतों में 41 बार इजाफे की वजह से पेट्रोल करीब 11.5 रुपये तक महंगा हो चुका है. डीजल के दाम भी बीते 75 दिनों में 37 बार बढ़े हैं.

आयात पर खर्च ज्यादा
पेट्रोल-डीजल की कीमतों की दर बढ़ने का एक बड़ा कारण पेट्रोल का आयात भी है. भारत अपनी जरूरत का 80 से 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है. कच्चा तेल आयात करने वाला भारत दुनिया का तीसरा बड़ा देश है. यह कच्चा तेल यानी क्रूड ऑयल बैरल में आयात किया जाता है. एक बैरल में 158.98 लीटर कच्चा तेल आता है. रविवार को यह 73.30 डॉलर प्रति बैरल यानी 5480 रुपये था. इस हिसाब से अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक लीटर कच्चे तेल की कीमत 34.46 रुपये है.

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इंडियन बास्केट की वजह से कीमत में फर्क
भारत को जिस कीमत पर कच्चा तेल मिलता है, उसे इंडियन क्रूड बास्केट कहते हैं. कच्चा तेल दो तरह का होता है- सोर क्रूड और स्वीट क्रूड. जिस कच्चे तेल में सल्फर ज्यादा हो, उसे सोर क्रूड कहते हैं. वहीं, कम मात्रा में सल्फर वाले कच्चे तेल को स्वीट क्रूड कहते हैं. इंडियन क्रूड बास्केट की गणना में इस तेल का वेटेज 68.2 फीसदी है. इस तेल की प्रोसेसिंग पर ज्यादा खर्च आता है. बाकी तेल का वेटेज 31.8 फीसदी है. इसी आधार पर इंडियन क्रूड बास्केट तय की जाती है. जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत भले ही कम हो, इंडियन बास्केट में कीमत कुछ ज्यादा हो सकती है.

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