भोपाल। राजद्रोह का मुकदमा झेलने वाले हिंदी के पहले पत्रकार पंडित माधवराव सप्रे की 150 वी जंयती आज है। मराठी होकर भी हिंदी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ ने हिंदी को समृद्ध किया. माधवराव सप्रे ने लेखन, समाज सुधार और आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. हिन्दी नवजागरण के पुरोधा पं. माधवराव सप्रे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित चित्र प्रदर्शनी, शनिवार से भोपाल स्थित सप्रे संग्रहालय में आरंभ हो गई है. इसके साथ ही समूचा सप्रे साहित्य भी प्रदर्शनी में रखा गया है. यह प्रदर्शनी पूरे वर्ष भर खुली रहेगी.
पं. माधवराव सप्रे के कालजयी कृतित्व को समर्पित एकमात्र स्मारक सप्रे संग्रहालय की. इस प्रदर्शनी में 15 चित्रों के माध्यम से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’, ‘हिन्दी केसरी’, ‘हिन्दी ग्रन्थमाला’, ‘कर्मवीर’ के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को प्रस्तुत किया गया. ‘दासबोध’, ‘गीता रहस्य’ और ‘महाभारत मीमांसा’ के अनुवाद और हिन्दी में अर्थशास्त्र के चिंतन की परंपरा, समालोचना शास्त्र के विकास और हिन्दी के उन्नयन में सप्रेजी की भूमिका पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन की संदर्भ टिप्पणियों को उकेरा गया. सप्रे संग्रहालय की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा के मुताबिक, 19 जून को सप्रे के तपस्वी जीवन के 150 साल पूरे हो रहे हैं.
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