भोपाल। लंबे समय से बीमार चल रहे अजीत जोगी भले ही दुनिया से रुखसत हो गए हों, लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की राजनीति में उनका नाम हमेशा याद रखा जाएगा. छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बनने वाले जोगी ने कलेक्टरी छोड़ खादी पहनने का निर्णय राजनीति के चाणक्य अर्जुन सिंह की सलाह पर लिया था. अजीत जोगी ने राजनीति का ककहरा और राजनीतिक दांवपेच अर्जुन सिंह से ही सीखे. अर्जुन सिंह के करीब रहते वे राजीव गांधी के संपर्क में आए और फिर राजनीति के ही होकर रह गए.
पहले आईपीएस बने, फिर आईएएस
1946 में बिलासपुर के पेंड्रा में जन्मे जोगी ने भोपाल के मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद कुछ समय रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाने का भी काम किया. इसके बाद 1968 में यूपीएससी में सफल हुए और आईपीएस बन गए, लेकिन उन्हें आईपीएस बनना रास नहीं आया. दोबार यूपीएसपी की परीक्षा दी और वे आईएएस बन गए. प्रशासनिक अधिकारी रहते उन्होंने अपनी क्षमत, दक्षता और सूझबूझ का परिचय दिया. अजीत जोगी अलग-अलग जिलों में 14 सालों तक कलेक्टर रहे, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड रहा.
अजीत जोगी ने अविभाजित मध्यप्रदेश के तमाम बड़े जिलों में कलेक्टरी की, जहां वे रहे, वहां की राजनीतिक शख्सियतों के करीबी बनते गए. इंदौर में जब जोगी कलेक्टर बने, तब मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी थे. वहां उन्हें सेठी की छत्रछाया मिली. इसी तरह ग्वालियर में कलेक्टर रहते वे माधवराव सिंधिया के संपर्क में आए. रायपुर में कलेक्टर रहते श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल से उनकी नजदीकियां बनी. सीधी पहुंचे तो वे अर्जुन सिंह के संपर्क में आए. अर्जुन सिंह के जरिए ही राजीव गांधी तक पहुंच बनाई. इसके बाद उन्होंने प्रशासनिक गलियारे छोड़ राजनीति की राह पकड़ ली.