भोपाल।साल 2003 के विधानसभा चुनाव के परिणाम ने मध्यप्रदेश की सत्ता से कांग्रेस की दिग्विजय सरकार को बेदखल कर दिया था. 10 साल तक सत्तारूढ़ रहे दिग्विजय सिंह को उस समय सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी इस रूप में भारी पड़ी थी. कर्मचारियों का डीए, 28 हजार से ज्यादा दैनिक वेतन भोगियों को निकाले जाने का आदेश और नौकरी के लिए 20 -50 का फार्मूला कांग्रेस की हार का सबब बने थे. आज फिर मध्यप्रदेश में ऐसे ही हालात नजर आ रहे हैं. ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग को लेकर सरकारी कर्मचारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से खफा हैं. कर्मचारियों की यह नाराजगी क्या 2023 में 2003 का रीमेक बन सकती है. नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने सदन में एलान भी किया है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर दी जाएगी होगी. वहीं, मौजूदा वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा इसको लेकर किसी भी प्रावधान से इनकार कर चुके हैं.
हंगामा क्यों है बरपा:चुनावी साल में आर-पार की लड़ाई के मूड में आ चुके कर्मचारी संगठन पहले ही पुरानी पेंशन को लेकर एक महीने का अल्टीमेटम दे चुके हैं. नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के प्रदेश अध्यक्ष परमानंद डेहरिया कहते हैं, 'नई स्कीम का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि इसमें पेंशन मिलने की भी गारंटी नहीं है. ये स्कीम एक छलावा है. नई पेंशन स्कीम में 10 परसेंट की राशि कर्मचारी के खाते से जाती है जबकि सरकार उसके समस्त वेतन में 14 फीसदी का अंशदान देती है. अब जब कर्मचारी रिटायर होता है तो चालीस प्रतिशत इक्विटी इन्वेस्टमेंट होता है और 60 फीसदी राशि कर्मचारी को वापिस हो जाती है. फिर 40 फीसदी इन्वेंस्टमेंट में से जो वार्षिक लाभांश निकलता है, वह कर्मचारी को पेंशन के रूप में मिलता है. नई स्कीम में कर्मचारी के रिटायर होने के 6 महीने बाद तक पेंशन नहीं मिलती. जिसकी तनख्वाह साठ हजार है, उसे ढाई हजार पेंशन मिलती है.'