भोपाल।राजधानी भोपाल में आवारा कुत्तों का आतंक तेजी से बढ़ रहा है और वो अब जनता को निशाना बना रहे हैं. कुत्तों के बढ़ते आतंक से नगर निगम के सारे दावों की पोल खुलती जा रही है. कुत्तों की जनसंख्या को कम करने के लिए भोपाल नगर निगम (Bhopal municipal Corporation) हर साल नसबंदी अभियान भी चलाता है, जिसमें करोड़ों रुपए खर्च भी किए जाते हैं, लेकिन भोपाल में बढ़ती कुत्तों की संख्या से नगर निगम का अभियान महज कागजों तक सीमित हो जाता है. यही वजह है कि आवारा कुत्तों की संख्या कम होने के बजाय साल दर साल बढ़ती जा रही है. अब रहवासियों को अपने बच्चों को कुत्तों से बचाने की चिंता सताने लगी है.
नगर निगम कमिश्नर प्लानिंग हुई है फैल !
पिछले साल अवधपुरी इलाके में आवारा कुत्तों ने 6 साल के बच्चे को मौत के घाट उतार दिया था. लिहाजा नगर निगम में हड़कंप मच गया था और नीचे से ऊपर तक के अधिकारियों को फटकार पड़ी थी और तय किया गया था कि नसबंदी कार्यक्रम की मॉनिटरिंग की जाएगी. जिसमें डॉक्टर एंट्री सिस्टम, डॉग एंट्री सिस्टम, डॉग टोकन सिस्टम को विकसित करने के अलावा शहर में कुत्तों की धरपकड़ के लिए जमीनी अमले को बढ़ाने का दावा किया गया था, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है. हालांकि नगर निगम कमिश्नर का दावा है कि जहां से भी शिकायत आती है वहां कार्रवाई की जाती है.
सालाना डेढ़ करोड़ होते हैं खर्च
राजधानी भोपाल में छह साल पहले 25 हजार आवारा कुत्ते थे, जिनकी संख्या बढ़कर अब सवा लाख के करीब पहुंच गई है. नगर निगम द्वारा नसबंदी के लिए सालाना डेढ़ करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन कुत्तों की जनसंख्या कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है. कुत्तों के बढ़ते आंकड़ों पर अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नसबंदी अभियान कागजों तक ही सीमित क्यों है.
गर्मी में और खूंखार हो जाते हैं आवारा कुत्ते
पशु चिकित्सक डॉक्टर एचएल साहू का कहना है कि गर्मी के मौसम में कुत्ते ज्यादा खूंखार हो जाते हैं, क्योंकि तापमान जब बढ़ता है तो उन्हें छाया चाहिए होती है. पानी चाहिए होता है और तब ये नहीं मिलता है तो आवारा कुत्ते इधर-उधर भागने लगते हैं और इनकी मेंटल स्थिति बदलती है और फिर जो भी दिखता है उसे काटने लगते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जो उनके पास आ रहा है वो उन पर अटैक करने वाला है.
6 साल की नसबंदी का आंकड़ा