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नहीं रहे 'हिमालय के रक्षक' सुंदरलाल बहुगुणा, AIIMS में चल रहा था कोरोना का इलाज

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे. कोरोना संक्रमण की चपेट में आए 94 बहुगुणा का नौ मई से ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उपचार चल रहा था. शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली. बहुगुणा के निधन पर शोक जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, सुंदरलाल बहुगुणा का निधन हमारे देश के लिए एक बड़ी क्षति है. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पर्यावरणविद् बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया.

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सुंदरलाल बहुगुणा का निधन

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Published : May 21, 2021, 4:32 PM IST

भोपाल/देहरादून :कोरोना से संक्रमित मशहूर पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का निधन हो गया है. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पर्यावरणविद् बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया. बहुगुणा ने एम्स ऋषिकेश में आखिरी सांस ली. उन्हें आठ मई को कोरोना संक्रमित होने के बाद एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था.

12 मई को फेफड़ों तक पहुंचा था संक्रमण
एम्स के कोविड आईसीयू वार्ड में भर्ती पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के फेफड़ों में 12 मई को संक्रमण पाया गया था, जिसके बाद से उन्हें एनआरबीएम मास्क के माध्यम से आठ लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था. संस्थान के चिकित्सकों की टीम उनके स्वास्थ्य की निगरानी व उपचार में जुटी हुई थी.

बीते मंगलवार को कॉर्डियोलॉजी विभाग के चिकित्सकों की टीम ने सुंदरलाल बहुगुणा की हृदय संबंधी विभिन्न जांचें की थीं. इसके अलावा उनके दांए पैर में सूजन आने की शिकायत के बाद उनकी डीवीटी स्क्रीनिंग भी की गई थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जताया शोक

पीएम मोदी ने ट्वीट में लिखा, सुंदरलाल बहुगुणा का निधन हमारे देश के लिए एक बड़ी क्षति है. उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के हमारे सदियों पुराने लोकाचार को प्रकट किया. उनकी सादगी और करुणा की भावना को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. मेरे विचार उनके परिवार और कई प्रशंसकों के साथ हैं. ओम शांति.

उत्तराखंड CM तीरथ सिंह ने जताया शोक

चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला. यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित हैं. यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है.

गुरुवार को 86 पर था ऑक्सीजन सैचुरेशन

कोविड उपचार हेतु एम्स ऋषिकेश में भर्ती सुन्दरलाल बहुगुणा की स्थिति गुरुवार को स्थिर थी, लेकिन इस बीच ऑक्सीजन सैचुरेशन 86 प्रतिशत पर था. लगातार उनके ऑक्सीजन लेवल में गिरावट दर्ज की जा रही थी.

बता दें कि वह डायबिटीज के पेशेंट थे. इस बीच उन्हें निमोनिया भी हो गया था. विभिन्न रोगों से ग्रसित होने के कारण वह पिछले कई वर्षों से दवाइयों का सेवन कर रहे थे. 94 वर्षीय बहुगुणा को कोरोना होने के बाद आठ मई को एम्स में भर्ती किया गया था. बृहस्पतिवार को उनके स्वास्थ्य की जानकारी देते हुए एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल ने बताया था कि वो सिपेप पर हैं. उनका ऑक्सीजन लेवल 86 प्रतिशत पर है. उनका उपचार कर रही विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम ने इलेक्ट्रोलाइट्स और लीवर फंक्शन टेस्ट सहित उनके रक्त में अनियंत्रित स्तर के ब्लड शुगर की जांच और निगरानी की सलाह दी थी.

सुंदरलाल बहुगुणा का राजनीतिक और सामाजिक जीवन
टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए, जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है. 13 साल की उम्र में उनके राजनीतिक करियर शुरुआत हुई. दरअसल, राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था. सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे. सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है. 18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए. 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ.1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया. उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला. उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला. 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया.


चिपको आंदोलन में भूमिका
पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा. चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था. गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे. 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं, जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए. यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए. 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5000 किलोमीटर की यात्रा की. उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया. इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई.

टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन
बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की. तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी. सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया. उनका कहना है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल में बर्बाद हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा, लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गई हैं. अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा.

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