मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

MP: सिंधिया की मुट्ठी में 'पंजे' की ताकत, 15 माह बाद फिर वनवास की राह पर कांग्रेस!

मध्यप्रदेश में कांग्रेस की ताकत कार्यकर्ताओं के हाथ में न रहकर कुछ नेताओं हाथ में सिमटकर रह गई है. ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंधिया ने कांग्रेस का बीजेपीकरण कर दिया, जिसके बाद सिंधिया का विकल्प ढूंढ़ना कांग्रेस के लिए चुनौती बन गया है.

By

Published : Mar 22, 2020, 2:44 PM IST

Updated : Mar 22, 2020, 4:46 PM IST

no-big-congress-leader-in-gwalior-chambal-region-after-jyotiraditya-scindia-join-bjp
सिंधिया की मुट्ठी में 'पंजे' की ताकत

भोपाल। जैसे हर पेड़ की ताकत उसकी जड़ में छिपा होता है, वैसे ही किसी भी पार्टी की ताकत उसके कार्यकर्ताओं की संख्या और ताकत पर निर्भर होता है. लेकिन बदलते वक्त में ये बातें बेमानी लगने लगी हैं, अब पार्टी का मतलब मुट्ठी भर नेता हैं, लेकिन यही बंद मुट्ठी जब खुलती है तो पार्टी का वजूद भी खतरों से घिर जाता है. ग्वालियर-चंबल अंचल में कुछ ऐसा ही चल रहा है, जहां कांग्रेस के लिए जमीन तैयार करने की चुनौती है क्योंकि इन क्षेत्रों में कांग्रेस की जमीन को पूरी तरह से बीजेपी ने या यूं कहें कि सिंधिया ने हथिया ली है.

अब कौन सहारा?

सिंधिया की बगावत कमलनाथ सरकार को ले डूबी, जबकि सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र में कांग्रेस की कमर ही लगभग टूट गई है. अब यहां कांग्रेस के लिए खड़े होने की चुनौती है क्योंकि यहां कांग्रेस का मतलब सिधिया था और सिंधिया मतलब कांग्रेस. जो अब बदलकर सिंधिया मतलब बीजेपी हो गया है, जबकि यहां बीजेपी के पहले से ही एक नहीं बल्कि अनेक चेहरे मौजूद हैं. ऐसे में कांग्रेस को यहां जमीन तैयार करने के लिए लगभग शून्य से शुरूआत करनी होगी. जिसके लिए कांग्रेस के पास वक्त भी बहुत कम है और इसी समय में नई फौज तैयार कर सिंधिया से बदला लेने की चुनौती है.

ग्वालियर-चंबल अंचल में छह महीने के अंदर 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है, जहां पूरी तरह से सिंधिया का प्रभाव है, साथ ही बीजेपी भी यहां कम मजबूत नहीं है. ऐसे में पंजे की पकड़ मजबूत करने के साथ ही सियासी मैनेजमेंट के गुरू और राजनीति के चाणक्य को भी अपने हुनर की कसौटी पर खरा उतरना है. वरना 15 साल बाद सत्ता में हुई वापसी के 15 महीने बाद सत्ता की बेदखली फिर कांग्रेस के लिए वनवास साबित हो जाएगा क्योंकि ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंधिया ने पूरी तरह से कांग्रेसी का बीजेपीकरण कर दिया है.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस की दुर्दशा का एकमात्र कारण पार्टी का कैडर न होकर नेताओं का कैडर होना है. इसीलिए नेता के साथ ही कैडर भी चला जाता है. जिसके बाद पार्टी के सामने खुद का वजूद बचाए रखने की चुनौती बढ़ जाती है. ज्योतिरादित्य के मामले में भी यही हुआ. सिंधिया के इस्तीफे के बाद कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले नेताओं कार्यकर्ताओं की लाइन लग गई. काफी मान-मनौव्वल के बाद कुछ मान तो गए, लेकिन दिल में कसक बाकी रह गई. ऐसे में दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए गुना जाना पड़ा. बावजूद इसके यहां पार्टी को दोबारा खड़ी करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी.

कांग्रेस की ये हालत सिर्फ ग्वालियर अंचल में ही नहीं है, बल्कि पूरा प्रदेश टुकड़ों में बंटा है, जहां अलग-अलग कांग्रेसी दिग्गज का दबदबा है, यानि मध्यप्रदेश में कांग्रेस मुट्ठी भर नेताओं के कब्जे में है. यही वजह है कि लंबे समय से यहां पार्टी हासिए पर हैं क्योंकि यहां विरोधियों से लड़ने की बजाय कांग्रेसी आपस में ही एक दूसरे से अंदरखाने लड़ते रहते हैं, जिसका फायदा उठाते हुए बीजेपी ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस को एक बार फिर लंबे वनवास पर भेज दिया है. ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंधिया, विंध्य में अजय सिंह, महाकौशल में कमलनाथ और दिग्विजय का दबदबा है, लेकिन ग्वालियर-चंबल में सिंधिया ने कांग्रेस का बीजेपीकरण कर दिया है.

Last Updated : Mar 22, 2020, 4:46 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details