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टैक्सी ड्राइवरों की गाड़ी पटरी पर नहीं लौटी - ओला उबर

अनलॉक होने के बाद भी राजधानी में टैक्सी ड्राइवरों की आर्थिक स्थिति खराब है. वर्तमान में सिर्फ 300 गाड़िया ही चल रहीं हैं, जिसके कारण इन टैक्सियों के हजारों ड्राइवर बेरोजगार हो गए हैं.

taxi drivers in bhopal
अनलॉक में भी नहीं मिली राहत

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Published : Dec 30, 2020, 9:04 PM IST

भोपाल।कोरोना संक्रमण के चलते डगमगाई टैक्सी ड्राइवरों की आर्थिक स्थिति आज तक पटरी पर नहीं आ पाई है. कोरोना काल में हुए अचानक लॉकडाउन के चलते परिवहन की सभी सेवाओं पर ब्रेक लग गया था. अब अनलॉक में परिवहन सेवाएं दोबारा शुरू हो चुकी हैं. लेकिन राजधानी भोपाल में अनलॉक के बाद भी 10 फीसदी टैक्सियां ही सड़कों पर दौड़ रही हैं. राजधानी में ओला-उबर की 2 हजार गाड़िया चलती हैं. लेकिन वर्तमान में सिर्फ 300 गाड़िया ही चल रहीं हैं, जिसके कारण इन टैक्सियों के हजारों ड्राइवर बेरोजगार हो गए हैं. इनकी मदद के लिए न तो ओला-उबर की कंपनियां सामने आ रही हैं और न ही सरकार से इन्हें कोई मदद मिल रही है. ऐसे में ओला-उबर के ड्राइवर अनलॉक के बाद भी लॉकडाउन जैसी मार झेल रहे हैं.

अनलॉक में भी नहीं मिली राहत

अनलॉक में भी नहीं मिली राहत

ओला-उबर के ड्राइवरों का कहना है की लॉकडाउन में गाड़ियां तीन महीने तक खड़ी रहीं. इस बीच राजधानी के करीब 2 हजार ड्राइवर बेरोजगार हो गए. आज तक 60 फीसदी ड्राइवर बेरोजगार हैं. इनका कहना है कि राजधानी में 2 हजार ओला-उबर की गाड़ियां अटैच हैं, लेकिन वर्तमान में सिर्फ 300 गाड़िया चल रही हैं. जबकि अनलॉक हो चुका है. परिवहन की सभी सेवाएं शुरू हो चुकी हैं. लेकिन इस बीच ओला-उबर के ड्राइवर अब भी कोरोना की मार झेल रहे हैं.

कॉन्ट्रैक्ट कर मजधार में फंसे संचालक

ओला-उबर के ड्राइवरों का कहना है कि कंपनी में हर साल 5 साल का कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है. कॉन्ट्रैक्ट के तहत ओला-उबर की गाड़ियां लोकल परिवहन में अटैच होती हैं. लॉक डाउन के चलते इस साल कॉन्ट्रैक्ट के बीच मार्च महीने में गाड़िया बंद हो गईं. मार्च तक कॉन्ट्रैक्ट के 3 साल पूरे हुए थे. अब लॉक डाउन के चलते आधा साल निकल गया. कॉन्ट्रैक्ट का पैसा भी चला गया. ड्राइवरों ने कॉन्ट्रैक्ट का किराया भी दिया और गाड़िया बंद होने की वजह से ड्राइवरों को इसका नुकसान झेलना पड़ा.

राजधानी में 10 फीसदी गाड़ियों का हो रहा संचालन

अनलॉक में सभी गाड़ियों का संचालन शुरू हो चुका है. लेकिन राजधानी में ओला-उबर की केवल 20 फीसदी गाड़िया चल रही हैं. 600 गाड़िया परिवहन में खड़ी धूल खा रही हैं. ड्राइवरो का कहना है कि लॉक डाउन में हमसे गाड़िया खड़ी करवाई और अब अनलॉक के बाद भी ड्राइवरों को गाड़िया नहीं मिल रहीं. समास्या यह है कि परिवहन विभाग कहता है कि यह मामला कंपनी का है. और ड्राइवर कंपनी में डायरेक्ट कांटेक्ट नहीं कर पाते हैं.

ड्राइवर जुबेर खान ने बताया कि लॉक डाउन में टैक्सी ड्राइवरो की स्थिति बहुत खराब हुई है. आज अनलॉक में सारी सेवाएं शुरू हो चुकी हैं. लेकिन हमारी 600 गाड़िया अब भी आरटीओ के कब्जे में हैं, जिसके चलते कई ड्राइवर आज भी बेरोजगार हैं.

ड्राइवरों को नहीं मिला फायदा

साल 2019 में ओला-उबर कंपनियों के लिए मोटर वाहन एग्रीगेट गाइडलाइन जारी हुई थी. जिसमें ओला-उबर के लिए कई प्रावधान किए गए थे. जैसे ओला-उबर कैब गाड़ियों का किराया राज्य सरकारों द्वारा तय करना, राइड कैंसलेशन फीस का 10 फीसदी किराया तय किया गया, जिसके तहत अगर ड्राइवर या ग्राहक राइड कैंसिल करता है तो उसे 10 फीसदी याने 25 रुपये देने होंगे. इस गाइडलाइन के बाद ड्राइवरों की समास्या और बढ़ गई. कैब ड्राइवरों का कहना है कि इस गाइडलाइन का फायदा न कस्टमर को है न ड्राइवर को. इसका जो 10 फीसदी मिलता है, वो सीधा कंपनी के खाते में जाता है.

ओला-उबर के ड्राइवर का कहना है कि अक्सर ऐसा होता है कि जब यात्री गाड़ी बुक करता है तो वो जिस लोकेशन पर होता है, वही लोकेशन डालता है लेकिन अक्सर वो लोकेशन गूगल मैप से 1 या 2 किलोमीटर दूर होती है. ऐसी स्थिति में राइड कैंसिल करना पड़ता है. ड्राइवर कोशिश करता है कस्टमर राइड कैंसिल करे. कस्टमर का प्रयास रहता है कि ड्राइवर कैंसिल करे. इस स्थिति में परेशान ड्राइवर और कस्टमर होते हैं, जबकि कैंसिलेशन अमाउंट सीधा कंपनी के खाते में जाता है.

परिवहन ने कहा ओला-उबर टैक्सियां हमारा कंसर्न नहीं

आरटीओ अधिकारी संजय तिवारी का कहना है कि ये पॉलिसी कंपनी की है. लेकिन इससे संबंधित शिकायतें लोकल आरटीओ में आती हैं. हालांकि अब तक इस तरह की शिकायतें आरटीओ के पास नहीं आई हैं. उन्होंने अगर ऐसी शिकायतें आती है तो इसका आरटीओ द्वारा निराकरण किया जाएगा. वहीं राजधानी में वर्तमान में सिर्फ 300 कैब गाड़िया चल रही हैं. इस पर आरटीओ ने कहा हमारा काम गाड़ियां अटैच करना है. कंपनी जब कहेंगी, तब गाड़ियां शुरू हो जाएंगी.

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