भोपाल। मस्तक पर त्रिपुंड, चेहरे पर मुस्कान और आसान पर विराजमान.. यह तस्वीर है कथा वाचक आचार्य अनिरुद्धाचार्य की, लेकिन जिस आसन पर वे विराजमान हैं, वह भोपाल की केंद्रीय जेल के अधीक्षक राकेश भांगरे की कुर्सी है. सोशल मीडिया पर वायरल इस तस्वीर पर लोग लिख रहे हैं कि किसी अधिकारी की कुर्सी पर किसी अन्य को बैठना नियमों के खिलाफ है, लेकिन जेलर ऐसा नहीं मानते. ईटीवी भारत ने जब जेलर राकेश भांगरे से बात की तो उन्होंने बताया कि आचार्य अनिरुद्धाचार्य को उन्होंने खुद आमंत्रित किया था और जब वे आए तो स्वयं आग्रह करके उन्हें अपनी कुर्सी पर बैठाया.
इस कारण महाराज को कुर्सी पर बैठाया:राकेश भांगरे ने अनिरुद्धाचार्य को कुर्सी पर बैठाने का कारण बताते हुए कहा कि "वर्ष 2018 में मैंने उन्हें अपना गुरू माना था और गुरू दीक्षा ली थी, ऐसे में जब वे मेरे आग्रह पर जेल आए तो उनसे आग्रह किया कि आप मेरी कुर्सी पर विराजमान हो. वे बमुश्किल एक से डेढ़ मिनिट ही मेरी कुर्सी पर बैठे होंगे, लेकिन यह मेरे लिए सबसे कीमती पल थे. मेरा अहोभाग्य है कि वे मेरी कुर्सी पर बैठे." जब जेलर राकेश भांगरे से पूछा कि यह तो सर्विस रूल के खिलाफ है तो वे बोले कि "अपने गुरू को आप अपने से कम आसन पर कैसे विराजित कर सकते हैं. सनातन में गुरू और माता पिता का स्थान सबसे ऊंचा होता है, ऐसे में मुझे लगा कि मेरे आसन पर उन्हें बैठाना चाहिए, इसलिए उन्हें बैठाया." इसी के साथ सोशल मीडिया पर ट्राेल कर रहे लोगों को लेकर जेलर ने कहा कि "जिसे जैसा समझना हो, वे वैसा समझ सकते हैं, लेकिन मेरी निगाह में एक गुरू का आदर इससे बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है."